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शुद्रों का अपमान

शुद्रों का अपमान

शुद्रों का जितना अपमान किसी काल में ब्राहमणों ने नहीं किया होगा उससे अधिक अपमान हमारे अपने ही शुद्र भाई जो आर्थिक और सामाजिक संपन्न हैं, वह कर रहे हैं। बार बार यह अहसास दिलाते हैं कि हम शुद्र हैं, कोई यह नहीं कहता कि आगे बढ़ो, अपनी योग्यता से समाज में अपनी पहचान बनाओ।
इससे भी अधिक अपमान क्या होगा जिन लोगों ने अपनी मेहनत व काबलियत से कोई मुकाम बनाया है, जिन्हें पूरी दुनिया उनकी जाति से नहीं बल्कि योग्यता से पहचानती है, हम उन्हें भी शुद्र तक ही सीमित करने में जुटे हैं। शायद किसी को नहीं पता होगा कि दुनिया की प्रसिद्द धाविका पी टी उषा किस जाति या धर्म की है, मगर हम उसके काम से प्रेरणा लेने के बजाय उसे केवल शुद्र शाबित करने पर तुले हैं। आखिर क्या लाभ होगा इस सबसे, है किसी के पास जवाब?
हमारा मानना है कि हमें पी टी उषा की योग्यता पर गर्व करना चाहिए और अपने बच्चों को प्रेरणा दें कि वह भी कुछ महत्वपूर्ण करें। कालांतर में क्या हुआ और क्यों, इस पर बहस करने से समाज के एक वर्ग यानी नेताओं को फ़ायदा होता है, आम आदमी को नहीं।
स्वयं विचार करें कि हमें वर्तमान में भी दोषारोपण कर यूँ ही जिंदगी बसर करनी है अथवा अपनी योग्यता और मेहनत से अपना और समाज का नाम रोशन करना है?

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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