बन्धनों में रहने की मेरी आदत नही,
खुद की खातिर जीने की आदत नहीं।बहता रहूँ दरिया सा छोर से छोर तक,
नहरों में सिमटकर बहने की आदत नहीं।
पवन सा चलता निरन्तर गतिमान हूँ,
सूर्य के तेज सा प्रखर अभिमान हूँ।
रहता गगन में तारों संग चन्द्रमा बना,
सृष्टि में शीतलता का भी प्रतिमान हूँ।
पर्वतों से उन्मुक्त झरना बन गिरूँ,
अनछुआ संगीत बन धुन में ढलूँ।
कल-कल निनाद करता बहने वाला,
प्यास बुझाने हित छोटे सोतों सा बनूँ।
अ कीर्ति वर्द्धन
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