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पुरब और पश्चिम

पुरब और पश्चिम

हम राम कृष्ण कहते थे,
वे येशु मसीह कहते थे ।
अब हम राम कृष्ण पर तर्क वितर्क करते हैं ,
और मंदिर जाना भुला रहे हैं ।
अब वे राधे कृष्ण कहते हैं ,
मंदिरों में और रास्ते पर,यह नाम लेकर ,
नाचते और गाते हैं ।
और कृष्ण भक्ति में ,
सराबोर डूब जाते हैं ।
सिर पर शिखा रखते हैं ,
गले में तुलसी माला ,
धारण करते हैं , चंदन तिलक और,
धोती कुर्ता धारण करते हैं और ,
पैर में काठ का पादुका पहनते हैं ।
आज पश्चिमी सभ्यता ,हमारी
भारतीय सनातन सभ्यता को ,
अपना रही है ।
और आज हम भारतीय लोग ,
अपनी आदि सभ्यता को ,
भुलते जा रहे हैं ।
आज हम सिर पर शिखा रखते नहीं
माला धारण करते नहीं ,
चंदन तिलक लगाने से हिचकिचा रहे हैं ,
और धीरे धीरे सनातन धर्म को ,
हम सब भुलते जा रहे हैं ।
यह कैसी विडम्बना है कि ,
पश्चिम ने पुरब को अब सम्मान दिया है।
और हम पुरब वालों ने अपनी ,
सनातन सभ्यता खो देंगे ,यह ठान लिया है । जय प्रकाश कुंअर
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