उड़ान
इस बार रामू दो महीने का अवकाश लेकर गांव आया था।इस दो महीने में अपने सभी रिश्तेदारों के यहां घुमता रहा । उसके संगी साथी और सभी रिश्तेदार उससे पूछते बता कब शादी कर रहा है कब हमलोगों को दावत देगा। जब दूर के गांव के उसके बचपन के साथी रतन को पता चला कि रामू गांव आया हुआ है तो वह उससे मिलने आ पहुंचा। दोनों दोस्त बहुत देर तक बचपन की यादों में खो गए। कुछ इधर उधर की बातें हुई। और गर्व से रतन ने बोला यार हो तो ऐसा जो शहर में जानें के बाद भी नहीं बदला। बात बात में रतन ने बताया कि तुम्हारे ही दफ्तर में मेरी फुफेरी बहन (सुनीता)ज्वाइन की है। बचपन में उसके सर से फूफा जी का साया उठ गया। बुआ ने बहुत ही जतन से उसे पाल पोसकर बड़ा किया। वह अपने मेहनत के बल वहां तक पहूंची है। आज हम सभी को उसपर नाज है।
रामू रतन की बात को ध्यान से सुनते सुनते एक दूसरी ही दुनिया में खो गया। उसकी आंखों के सामने सुनीता की तस्वीर घुम्ने लगी। जब दोस्त ने देखा अचानक रामू कहीं खो गया है तो उसे जगाया और कहा दोस्त अब चलता हूं।शाम ढलने वाली है। घर पर तेरी भाभी इंतजार कर रही होगी। समय से नहीं जाऊंगा तो सारे दुकान बंद हो जाएंगे और बिना हरी सब्जी के ही खाना खाना पड़ेगा।
इधर रामू तीन महीने बाद आज दफ्तर आया था
दफ़्तर में उसे काम करने की इच्छा नहीं हो रही है। बार बार उसे रतन की बातें याद आ रही है।उसके आंखों के सामने सुनीता की छवि नाचने लग रही है।
अचानक उसके कानों में मीठी आवाज गु़ंजती है। रामू, क्या बात है?आज चुपचाप बैठे हो।
आवाज उसकी नयी बास सुनीता की थी। वह उसके कार्य के प्रति समर्पण से सदैव खुश रहती थी। उसका व्यवहार भी बहुत अच्छा था। सच कहा जाए तो उसके सादगी पर वह मोहित थी। पर उसे अपना प्रेम का इजहार करने की हिम्मत नहीं होती थी। आज वह हिम्मत जूटा कर बोली रामू आज मुझे भी काम करने का मन नहीं चलो उठो कहीं चलते हैं। कहीं एकान्त में बैठकर कुछ बातें करेंगें।
रामू अपने बास के आदेश को ठुकरा नहीं सका। वह सुनीता के पीछे पीछे चल पड़ा।
दोनों आफिस के कैंटीन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ कुछ इधर उधर की बातें की। फिर वहां से निकल पास के लान में एक एकांत जगह पर जाकर बैठ गये। सुनीता ने रामू से बताया मेरे परिवार में केवल दो लोग हैं। मैं और एक बुढ़ी मां। मां बताती है कि जब मैं तीन वर्ष की थी, एक सड़क दुर्घटना में पिताजी की मृत्यु हो गई थी। पिताजी की मृत्यु के बाद जी पी एफ, और ग्रेच्युटी से प्राप्त पेसे से मां ने मुझे शिक्षा दिया। और पेंशन के पैसे से घर का काम होता। मां ने हमपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी दे दी है और वह है अपने लिए एक योग्य वर की तलाश करने की।
मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं। तुम्हें यदि मैं पसंद हूं तो कहो । मैं तुम्हारे पिताजी से इस विषय पर बात करुं। डरो मत। उनकी स्वीकृति के बाद ही विवाह होगा।
सुनकर रामू को ऐसा लगा मानो उसके पास खुद चलते हुए परी आ गई। सुनीता के प्रस्ताव को वह ठुकरा नहीं सका।और हां मैं सर हिला दिया।
उसके मां पिताजी अब बुढ़े हो गये हैं मां अब बराबर बीमार रहती है।अभी कुछ ही दिन पहले गांव से वह मां और पिताजी को ले आया है। अब वे लोग भी साथ में रहेंगे।
एक रात उसकी मां ने उससे कहा बेटा तू एक अच्छे जगह पर काम करता है। व्याह के लिए बहुत रिश्ते आ रहे हैं । कुछ लड़कियों के फोटो भी साथ ले आई हूं। यदि कहे तो दिखाऊं। उसे समझ में नहीं आ रहा था मां से क्या कहे।
इधर सुनीता बार बार उससे घर का पता पूछ रही थी। वह चाह रही थी रामू के पिताजी से एक बार विवाह के लिए बात करे। आखिरकार रामू ने घर का पता सुनीता को दे दिया।
रविवार का दिन था। रामू के पिताजी शाम में प्रतिदिन की तरह बाहर लान में कुर्सी पर बैठे हैं। अचानक काल बेल बजती है । पिताजी दरवाजा खोलते हैं । सामने साड़ी पहनी लम्बी डिल डाल वाली एक महिला को देखते हैं।
कुछ पूछने के पहले ही महिला पूछती है क्या रामूजी का घर यही है?
रामू के पिताजी हां बेटा, रामू का ही घर है । मैं उसका पिता हूं आओ दरवाजा बंद करते हुए आगे बढ़ते हैं ।गेस्ट रूम में महिला को बैठाकर स्वयं बैठ रामू को आवाज देते हुए कहते हैं बेटा बाहर आओ कोई तुमसे मिलने आईं हैं। रामू ने जैसे ही सुना उसके कदम रुक गए। आवाज बंद हो गई।
इधर सुनीता अपना परिचय देते हुए अपनी कहानी सुना देती है।और आने का उद्देश्य भी बताती है।
सुनीता का आत्मविश्वास, बोलने की शैली , पहनवा देख वह मन ही मन उसे बहू के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। तभी सुनीता कहती हैं चाचाजी मा ने मुझे भारतीय संस्कार दिया है जिसे मैं निभाती हूं। झूठ नहीं बोलूंगी दफ्तर के नियम और मर्यादा का पालन करते हुए आधुनिक लिवास भी पहनती हूं।पर केवल दफ्तर में ही।
सुनीता की सत्यवादिता ने रामू के पिताजी पर अमिट छाप छोड़ी। वो रामू को एक बार और आवाज दिया और कहा मां को भी बाहर ले आ।
पिताजी की आवाज में मिठास भरी थी। कुछ ही पल में रामू मां को सहारा देकर बाहर लाया और पिताजी के पास वाले सोफे पर बैठा वह भी मां के बगल में बैठ गया
पिताजी मां को सारी कहानी सुनाते हुए कहते हैं भाग्यवान सुनीता को मैं बहू मान लिया है । अब यह इस घर की बहू है और सून रामू ,तू ना नुकूर नहीं करेगा।
रामू को पिताजी ने आदेश दिया जा बाजार से एक खुबसूरत साड़ी पांच तरह का मिठाई और कुछ फल ले आ। बहू को खाली हाथ विदा नहीं किया जाता।
रामू बाजार से कहें अनुसार सब कुछ ले आया। मां सुनीता को भीतर भगवान के मंदिर के पास ले जाती है।ललाट पर सिंदूर का टीका लगाती है। आंचल में मिठाई और फल देकर आशीर्वाद देती है। पिताजी कहते हैं बेटी अपनी मां से कहना पंडित जी से जल्दी से कोई मुहुर्त निकलवाकर हमें बताएं। और सुनो विवाह में कुछ भी खर्च नहीं करना है। यह एक आदर्श विवाह होगा। और कहना विवाह के बाद वो भी यहीं रहेंगीं। अपना फोन नं देते हुए वो लोग सुनीता को विदा करते हैं।
सुनीता,रामू के पिता पंडितजी और मां की आंखो में खुशी के आंसू छलक रहे हैं।
और रामू। जिंदगी की एक लम्बी उड़ान की तैयारी में मश्गूल हो जाता है।
ओर वह दिन भी आ जाता है अब रामू और सुनीता हमेशा हमेशा के लिए प्रणय बंधन में बंध जाते हैं । सच कहूं तो यही वास्तव में उड़ान है। जिंदगी की सबसे बड़ी उड़ान।
जितेन्द्र नाथ मिश्र
कदम कुआं, पटना
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