Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

शिक्षक दिवस पर शिक्षक के सम्मान में ।

शिक्षक दिवस पर शिक्षक के सम्मान में ।

शिक्षक की बहुत ऊंची महिमा ,
जान सको तो तुम ये जान लो ।
शिक्षक की बहुत ऊंची गरिमा ,
सच्चे दिल से तुम ये मान लो ।।
सच्चे शिक्षक पथभ्रष्ट न होते ,
सच्चे शिक्षक पथप्रदर्शक होते हैं ।
गलत देख बनते न मूकदर्शक ,
शिक्षक स्वयं उत्सर्जक होते हैं ।।
प्रथम शिक्षिका अबोध बच्ची ,
जिससे लिखना मैं सीखा था ।
दूसरे शिक्षक वे अदृश्य मानव ,
जब मानव मानवता लिखा था ।।
अबोध बच्ची थी प्रांशु कुमारी ,
अदृश्य मानव विवेकानंद हुए ।
अबोध बच्ची से लिखना सीखा ,
स्वामी विवेकानंद सानंद किए ।।
तृतीय शिक्षक जख्मीकांत जी ,
जिनने मुझे यह स्थान दिया ।
छोड़ चले जब इस दुनिया को ,
आर प्रवेशजी ने सम्मान दिया ।।
चतुर्थ शंकरलाल जांगीड़ दादा ,
जिनने उत्साह वर्धन किया था ।
ये चारों हमारे काव्य के प्रेरक ,
जिनसे प्रेरणा बहुत मैं लिया था ।।
पंचम में श्रीकांत पारीक आए ,
जिनसे बहुत कुछ सीखता हूं ।
उनसे भी मेरा उत्साह है बढ़ता ,
फिर बैठ मैं काव्य लिखता हूं ।।
शिक्षकगण को है सादर नमन ,
जिन्हें ये पद्य समर्पित करता हूं ।
हे काव्य साहित्य तुझे भी नमन ,
मैं निज को भी अर्पित करता हूं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ