निराशा के गहन तम में, आशा की जोत जलाता हूँ,
संकट के कालखंड में, पर्यावरण की बात बताता हूँ।बिखर गये थे परिवार जो, रोजी रोटी के चक्कर में,
हुये इकट्ठा छत के नीचे, प्यार का सार समझाता हूँ।
जाने कितने संकट आये, चीन पाक भी आँख दिखाये,
संग हमारे विश्व खडा, भारत की ताकत दिखलाता हूँ।
सीमा पर सेना की ताकत, हतप्रभ चीन देख रहा है,
भेड़ खाल में छिपे भेडिये, गद्दारों का नकाब हटाता हूँ।
क्या खाना है, कितनी जरूरत, क्यों भेड़ चाल में दौडें,
समय ने जो सिखलाया हमको, उसका सार बताता हूँ।
नशे के सौदागर बैठे हैं, उनके संरकक्ष भी ऐंठे ऐंठे हैं,
सत्ता के किरदारों का, रिश्तों से रिश्ता आजमाता हूँ।
नकारात्मक जो हम देखें, समय बहुत खराब चल रहा,
सकारात्मक बात अगर हो, जीवन की आस जगाता हूँ।
अ कीर्ति वर्द्धन
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