प्रवेश तथा प्रस्थान (विपरीत अर्थ)
कर गया प्रवेश घर में, जब स्वार्थी आचरण,तन्हाईयां बढने लगी, नही कोई निराकरण।
रिश्तों में गाँठे पडी, करता नही बातें कोई,
झेलते एक दूसरे को,जैसे जहर का आचमन।
चाहते हो घर बचें, और परिवार में हो एकता,
प्रस्थान कह दो स्वार्थ को, ये घरों को तोडता।
तन्हाईयां इससे बढती, तनाव का कारण यही,
प्यार को घर में जगह, रिश्तों को यह जोडता।
अ कीर्ति वर्धन
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