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अमर प्रेम

अमर प्रेम

 
डा उषा श्रीवास्तव
फिर से आ जाओ नंन्दलाल
सारे जग के तारणहार,
करनें पापियों का संहार
हम सब करतें अरज गुहार
सारे जग के,,,,,,,,,,,,,,,,


बंदी गृह में जन्म लिए हैं
नंदीग्राम गुलजार हुआ ,
यमुना जी दर्शन करने को
व्याकुल है राह निहार
सारे जग के ******


कंश का अत्याचार बढा तो
घर-घर हा-हाकार मचा
ग्वाल-बाल की रक्षा करके,
तूने किया है जग उद्धार
सारे जग के,,,,,,,,,,,,,


वंशी की धुन सुनकर राधा
सखियों के संग मुग्ध हुयीं,
अमर प्रेम की तान सुनाने
फिर से आ जाओ एक वार
सारे जग के,,,,,,,,,,,,

मुजफ्फरपुर,बिहार
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