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समर्पण

समर्पण

जितेन्द्र नाथ मिश्र
इंदू का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि की थी।नियति का खेल देखिये जब वह आठवें क्लास में थी शहर में फैले हैजा के चपेट में उसकी मां आ गईं। रामप्रसाद ने बहुत कोशिश किया। अपनी छोटी सी दुकान को बेचकर पैसे का प्रबंध किया पर इंदू की मां को बचा नहीं सके।
घर में अब केवल दो ही लोग थे इंदू और उसके पिता राम प्रसाद। पत्नी के असमय मौत ने रामप्रसाद को तोड़ दिया था।पर उस नन्ही सी बच्ची ने ही पिताजी को सम्हाला।घर चलाने के लिए राम प्रसाद एक होटल में काम करने लगे
अचानक एक सुबह जब वे होटल जाने के लिए घर से निकले ,दरवाजे पर खड़े एक छोटे से बच्चे ने कातर दृष्टि से देखते हुए कहा बाबूजी मां को हैजा हो गया है अस्पताल में भर्ती है, दवा के लिए कुछ सहायता कर दो।
रामप्रसाद को अपनी घटना याद आ गई। झटपट अपने पाकेट से सारे पैसे निकाल उस बच्चे को दे दिया।और तेज तेज चलते होटल पहुंच गये।
इधर बच्चे की मां स्वस्थ होकर घर आ गई।पर उसमें इतनी शक्ति नहीं बची थी कि बेटे के लिए खाना बना सके। आखिरकार शाम होते-होते उस बच्चे को भूख से लड़ने को हिम्मत ने जवाब दे दिया। और वह एक होटल के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ। जहां बचे झूठे खाने को खाकर अपनी भूख मिटा सके।
अक्समात् राम प्रसाद की नजर उस बच्चे पर पड़ी।वो दौड़कर दरवाजे से बाहर आए।उसके पास जाकर पूछा तेरी मां अब कैसी है? बच्चे ने कहा चाचाजी मा स्वस्थ होकर घर तो आ गई पर उसमें इतनी ताकत नहीं कि वह ख़ाना बना सके। सुबह से कुछ नहीं खाया हूं बाबूजी कुछ खाना खिला दो बाबूजी कहते कहते रोने लगा। रामप्रसाद प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा, आंसू पोंछे और होटलके अंदर ले आते हैं।उसे भरपेट खाना खिलाया हाथ में कुछ पैसे दिए कहा मां के लिए कुछ फल ले जाना,कहकर बच्चे को विदा किया।इधर अपने मालिक से कहा इस बच्चे का खाने का पैसा मेरे वेतन से काट लेंगे।
                बच्चे की मां अब पूर्णतः स्वस्थ हो गयी। अब वह घर घर जाकर चौंका वररतन कर बच्चे की रुकी पढ़ाई को पुनः आरंभ करवा दी।
            शहर में आए नये पुलिस कप्तान जोगिंदर सिंह की घर घर चर्चा थी। उनकी ईमानदारी और कुशल प्रशासन के कारण अपराधियों पर सामत आ गयी थीं।
           रामप्रसाद के घर से दो मकान बाद अपराधियों ने जमीन विवाद के कारण घर में घुसकर एक अधेड़ की हत्या कर दी थी । जानकारी होते ही वकप्तान साहब दल-बल के साथ घटनास्थल की ओर चल पड़े। अचानक  पुलिस कप्तान की नजर रामप्रसाद पर पड़ते ही वो सारी घटना उनके आंखों के आगे तेजी से घुमने लगी। 
       एक मुखवीर को चौबीस घंटे उस घर के पीछे लगा दिया।और कहा सुबह सुबह प्रति दिन मुझे इस घर का रिपोर्ट करो।
        एक सुबह मुखवीर ने बताया हाकिम, रामप्रसाद की बेटी की शादी है दो दिन बाद बारात आने वाली है।पर बनिए ने कुछ भी उधार देने से मना कर दिया है।
      कप्तान जोगिंदर सिंह यह सुनते ही अवाक हो गये। झटपट तैयार हो मुखबिर के साथ उसी बनिए की दूकान पर जाकर आदेश देते हैं राम प्रसाद की बेटी की शादी है सारा समान समय से पहूंचा दो।और जो भी बिल होगा भुगतान मैं करुंगा। 
         बारात वाले दिन शाम में पुलिस कप्तान दल बल के साथ राम प्रसाद के घर आकर बाहर बैठे अतिथियों से राम प्रसाद को बुलाने का आदेश देते हैं। अंदर राम प्रसाद विवाह के पहले का रश्म में व्यस्त हैं। अचानक किसी ने कहा रामप्रसाद बाहर चलो पुलिस कप्तान बुला रहे हैं। सुनते ही रामप्रसाद और इंदू के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। पता  नहीं कहां से यह मुसीबत  आ गई, बड़बड़ाते हुए झट से दौड़ते हुए बाहर आते हैं। इंदू  भी पीछे पीछे भागती हुई  बाहर आती है और कातर दृष्टि से कप्तान साहब की ओर देखने लगा जाती है। 
           रामप्रसाद को बाहर आते देख कप्तान साहब तेज़ गति से रामप्रसाद की ओर बढ़ उसे सैल्यूट देते हैं।यह देख अचानक सराती हक्का बक्का हो जाते हैं। अभी लोग कुछ सोचते, अचानक कप्तान साहब अदब से बाएं हाथ से टोपी उतार दायें हाथ सेराम प्रसाद का पैर छूते हैं
              रामप्रसाद को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है तभी कप्तान साहब कहते हैं चाचाजी शायद आपने मुझे नहीं पहचाना। याद होगा एक दिन आप दफ्तर जा रहे थे ,एक छोटा बच्चा  अपनी बीमार मां का ईलाज के लिए आपके सामने हाथ पसारा था, आपको याद होगा जिस होटल में आप काम करते थे,उस होटल के दरवाजे पर भूख से कराहता एक लड़का खड़ा था, जिसे आप अंदर ले गए थे।और भरपेट खाना खिलाया था। आपको याद होगा विदा करते समय उस बच्चे के साथ में मां को फल खिलाने के लिए कुछ पैसे दिए थे।
            चाचाजी वह मैं ही था। चाचाजी आपके आशीर्वाद से मैं यहां तक पहूंचा हूं। चाचाजी एक बात और कहनी है मुझे बहन नहीं है। इंदू दीदी के विवाह में भाई का रश्म करने का मुझे मौका दे दें
             आज के बाद अब आप इस घर में नहीं रहकर मेरे साथ रहेंगे सबों के सामने यह भी वादा करिए।

                  रामप्रसाद के हां मैं सर हिलाते ही इंदू,उसका मुहबोला भाई जोगिंदर सिंह ,और सभी सराती खुशी में आंसू बहाने लगते हैं
       चारों ओर अब केवल एक ही चर्चा है रामप्रसाद और कप्तान साहब की सेवा भाव और एक दूसरे के लिए समर्पण की। 
                 जितेन्द्र नाथ मिश्र
                    कदम कुआं
                      पटना।
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