मंचों पर सफल होना है तो 'छंद का ज्ञान' आवश्यक,भाषा भी हो प्रांजल :-डा अनिल सुलभ
- साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई काव्य-कार्यशाला, सिखायी 'कविताई', पढ़ाया छंद का पाठ
पटना, ३ सितम्बर। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित हिंदी-पखवारा और पुस्तक-चौदस मेला के तीसरे दिन रविवार को, नवोदित कवियों के लिए 'काव्य-कार्यशाला' के रूप में एक प्रशिक्षण-कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें पद्य के विभिन्न रूपों और विधाओं के विषय में विस्तृत चर्चा के साथ उसकी रचना-प्रक्रिया और छंद-विधान की भी सोदाहरण जानकारी दी गई। नवोदित कवियों ने, मात्रिक और वार्णिक विधियों से मात्रा की गणना सिखी।
सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ भी शिक्षक की भूमिका में दिखे। उन्होंने भी गीत, ग़ज़ल, दोहा, मुक्तक, रुबाई आदि विधाओं का प्रारंभिक ज्ञान दिया और कहा कि मंचों पर सफल होना है तो 'छंद का ज्ञान' आवश्यक है। छंदो-बद्ध रचानाएँ ही किसी कवि को अमर करती है, क्योंकि वह चिर स्मरणीय और गेय होती हैं। हमारा प्राच्य साहित्य इसीलिए बचा रहा, क्योंकि वे छंदो-बद्ध थे, गेय थे। अन्यथा वेद, पुराणादि बचे नही होते।
वरिष्ठ कवि मार्कण्डेय शारदेय ने दोहा, सोरठा, रोला, कुंडलियाँ, सवैया, कवित्त आदि छंदों की रचना सोदाहरण समझाते हुए, कहा कि कविता में गति (प्रवाह) और यति (विराम) का होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के छंदों पर सबसे अधिक कार्य अयोध्या प्रसाद सिंह 'हरिऔंध' ने किया।कार्यशाला के प्रतिभागियों में सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, शायर आरपी घायल, रमेश कँवल, तलत परवीन, डा प्रतिभा रानी, डा पंकज वासिनी, डा सुमेधा पाठक, आराधना प्रसाद, सागरिका राय, डा सीमा रानी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा सीमा यादव, जय प्रकाश पुजारी, डा आर प्रवेश, चितरंजन भारती, चंदा मिश्र, प्रेमलता सिंह, प्रो सुशील झा, ई अशोक कुमार, अरुण कुमार श्रीवास्तव, सदानन्द प्रसाद, अरविंद अकेला तथा उत्तरा सिंह समेत अनेक कवि और बुद्धिजीवी उपस्थित थे।हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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