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संस्कार जब जिसको मिले, बचपन से ही मिले,

संस्कार जब जिसको मिले, बचपन से ही मिले,

संस्कार जब जिसको मिले, बचपन से ही मिले,
पचपन में लोगों को देखा, लकीर पीटते ही मिले।
बीज जब बोया धरा में, पुष्पित और पल्लवित हुआ,
जब भी रोपा वृक्ष कोई, कब कब वह पोषित मिले?

संस्कार ही धर्म आधार, संस्कार ही अध्यात्म हो,
संस्कार मानवता की जननी, संस्कार ही पहचान हो।
ज्ञान हो विज्ञान हो, अध्यात्म पर स्वाभिमान हो,
समन्वय दोनों का रहे, विश्व गुरु भारत का मान हो।

अ कीर्ति वर्द्धन
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