तेरे माडर्न पहनावे का कैसा ये कमाल हो गया।
तेरी सूरत ही तेरे जी का अब जंजाल हो गया ।।तू जिधर से निकलती हो ,सब भौंरे जैसे मड़ड़ाते हैं ।
तेरी नजाकत पर दिवाने हो ,खिंचे चले आते हैं ।।
तेरे तंग कपड़े तो अब और गजब ढाते हैं ।
तन को ढंकने के जगह , वो पूरे तन को ही दिखाते हैं ।।
ऐसी सूरत और ऐसे पहनावे से कब तक बच पाओगी ।
ईश्वर के इस अनुपम उपहार को मुफ्त में लुटाओगी ।।
वहशी जमाना आज किसी की कद्र नहीं करता है ।
और अभद्र पहनावा तो आहुति में घी का काम करता है ।।
रूप और यौवन तो ईश्वर का दिया हुआ उपहार है ।
पर मर्यादित पहनावा तो हमारा अपना व्यवहार है ।।
अंधानुकरण गलत पहनावे का रोका जा सकता है ।
अच्छा आचरण और अच्छे पहनावा से बहुत कुछ हो सकता है ।।
जय प्रकाश कुंअर
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