हो रही है भोर
डॉ रामकृष्ण मिश्र
साथी कस चलोगे? आरती की थाल ले
आई उषा आकाश सर सै
जागरण के गीत कढने लगे है
उन्मुक्त पर से।।
दिशाओं के द्वार खुलने लगे
साथी कब चलोगे?
बीथिकाओं मे उतर जाए
न कोलाहल अचानक।
सान्द्रता के भाव बाँधे रखें
सारे ध्येय मानक।।
चेतना की तलहटी में उगी
दूर्वा कब चलोगे।।
टूटने पाये न मन के धैर्य का
विश्वास साथी।
जटिलतम हो सकेगा शायद कभी
आभास साथी।।
शून्य से संतृप्ति ऊपर
उठ रहा हे कब चलोगे?। *************रामकृष्ण
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