कुछ बातें पुरानी याद आईं
और बर्बस आंखें भर आईं ।वह पचास - साठ का जमाना था ,
और गांव ही अपना ठिकाना था ।
हम मेला घूमने जाते थे ,
और मां , दादी से चवन्नी पाते थे ।
मां , दादी अपना आंचल का ,
कोना खोल हमें खुश कराती थी ,
हमें तैयार कर फिर ,
हमारे हाथों में चवन्नी थमाती थी ।
हमनें बेसाइज कपड़े पहन लिए ,
और नंगे पांव ही मेला घूमने निकल लिए ।
अपना पसंद जलेबी और गाटा था ,
यह उत्तम मिष्ठान मन को खुब भाता था ।
रूई नुमा मिठाई मन को ललचाता था ,
कटघोरा पर चढ़ना मन को खुब भाता था ।
बेलून खरीदना बहुत ज़रूरी था ,
उसके बिना मेला घूमना अघुरी था ।
उसमें जो आनंद था ,
सो लिख नहीं पाऐंगे ।
मन केवल दुखी होगा ,
और शब्द कम पड़ जायेंगे ।
आज पैसे की भरमार है ,
और एटीएम का जमाना है ।
पर मां , दादी के आंचल के एटीएम से ,
जो निकलता था , सो अब कहां पाना है ।
आज चाहे पैसा जितना भी ,
बढ़ता चला जाएगा ।
पर मन का वो खुशी और सुकून ,
कभी लौट कर नहीं आएगा ।
जय प्रकाश कुंअर
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