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प्रेम का ज्योति जगाने

मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में एक रचना उनके चरणों में समर्पित :

प्रेम का ज्योति जगाने ,

चंद्र की चाॅंदनी दिखाने ,
और बढ़ाने आए ज्ञान ।
समता विषमता दूर करने ,
सामाजिकता का न्याय करने ,
बनकर आए जो दूत महान ।।
चलती रही जिनकी लेखनी निरंतर ,
जातियता का दूर करने हेतु अंतर ,
साहित्यकार उपन्यासकार विद्वान ।
जीवन गॅंवाया लेखनी में जो पूरा ,
दूर करने हेतु विसंगति रूपी सुरा ,
दूर करने हेतु सामाजिक व्यवधान ।।
थे भारत के वे तो एक सच्चे लाल ,
गरीब लाचार का देख बदतर हाल ,
ठेस पहुॅंचा जिनसे उनके अरमान ।
किसी को सोने का बिस्तर नहीं घर में ,
पैसे कमाने का जिन्हें ताकत नहीं कर में ,
कोई महल में बेखबर सोए आलिशान ।।
शीतल चांदनी तुम बरसाने वाले ,
ज्ञान का मार्ग तुम दिखाने वाले ,
दुनिया से शीघ्र तुम किए पयान ।
तुम बिन आज दुखी ये अमन है ,
तुमको हमारा कोटिशः नमन है ,
पुनः आओ धरा पर प्रेमचंद भगवान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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