सनातन ज्ञान यज्ञ के अन्तर्गत जाने सनातन धर्म सम्बंधी शब्दों के मौलिक अर्थ , परिभाषा व्याख्या सहित पंडित कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगिराज जी के साथ “
1. वेद = मंत्रबद्ध वैज्ञानिक सूत्र संकलन का प्रथम ग्रन्थ (First Compendium of Systematic Scientific Formula on this Earth) |
2. चार वेद:- (1) ऋग्वेद (2) यजुर्वेद (3) सामवेद (4) अथर्ववेद | वेद सूक्त = वैज्ञानिक सूत्र (Scientific Formula) |
3. पांच उपवेद:- (1) आयुर्वेद= चिकित्सा विज्ञान के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (2) धनुर्वेद= सैन्यविज्ञान के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (3) सामवेद= नाट्यशास्त्र गायन वादन एवं संगीत विज्ञान के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (भरत मुनि का नाट्यशास्त्र); (4) शिल्पवेद = वास्तुशास्त्र अभियंत्रण तकनीक तथा मंदिर भवन नगर निर्माण विज्ञान एवं गणित के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (5) अर्थवेद = अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, न्यायशास्त्र, विधिविज्ञान, लोक प्रशासन (Public Administration) के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र |
4. धर्म सूत्र = सत्यं बृहद् ऋतं उग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति | (अथर्ववेद, १२.१.१) |
भावार्थ = नित्य धारणीय शाश्वत सत्य सनातन धर्म के 7 आधार स्तम्भ हैं:- (1) सत्य (2) ऋत (3) उग्र (4) दीक्षा (5) तप (6) ब्रह्म (7) यज्ञ |
5. सत्य = देश (स्थान विशेष) काल (समय परिस्थिति विशेष) पात्र (व्यक्ति विशेष) को ध्यान में रखकर उचित वचन कर्म व्यवहार |
6. ऋत = व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक व्यावसायिक कार्यों का सही तरीका से सही रूप में सही समय पर उचित कार्य-सम्पादन |
7. उग्र = समाज में शान्ति व्यवस्था हेतु उग्र रूप धारण करके अधर्मी कुकर्मी अपराधी आतंकवादी को तुरंत अथवा शीघ्र समानुपातिक दंड देना|
8. दीक्षा = प्रकृति प्रदत्त मनुष्य के मूल स्वभाव एवं गुण के अनुरूप व्यावसायिक शिक्षा-प्रशिक्षण एवं सभी उपयोगी विषयों की सामान्य शिक्षा |
9. तप = विपरीत परिस्थितिमें रहकर भी व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक व्यावसायिक कार्यों का सही तरीका से सही समय पर उचित सम्पादन|
10. ब्रह्म = निराकार परब्रह्म परमात्मा ईश्वर एक हैं | निराकार होकर भी वही परब्रह्म परमात्मा साकार रूप में व्यक्त हैं तथा समस्त प्रकार के चल-अचल पदार्थ जीव वनस्पति एवं प्रकृति के कण-कण में विद्यमान होकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं | ईष्ट देवी-देवता परब्रह्म परमात्मा के अंश|
11. यज्ञ = धारणीय विकास हेतु यज्ञ:- (1) मंत्रोच्चारण (2) हवन (3) बलि (4) दान (5) दक्षिणा (6) परिवार कल्याण (7) समाज कल्याण |
12. बलि= दैनिक 5 बलि (यज्ञ में 7):-(1) गोबलि (2) श्वानबलि (3) काकबलि (4) देवबलि (5) पिपीलिकादिबलि |(6) नरबलि (7) अश्वबलि|
भावार्थ = प्रतिदिन गाय, कुत्ता, कौवा पक्षी, अग्नि देवता, चींटी इन सबको प्रेम आदर श्रद्धा के साथ भोजन देकर ही स्वयं भोजन करना |
यज्ञ में दो अतिरिक्त बलि निर्देशित हैं:- (6) नरबलि = अतिथि को सादर भोजन देना (7) अश्वबलि = अतिथि-वाहन घोड़ा को भोजन देना |
13. दान = गुरुकुल विद्यालय, चिकित्सालय, मंदिर, धर्मशाला, धार्मिक न्यास, धार्मिक संगठन, धार्मिक संस्थान की स्थापना-संचालन हेतु ब्रह्मज्ञानी सुपात्र ब्राह्मण देवता को सादर देय धनराशि चल-अचल संपत्ति | सभी समुदाय के सभी व्यक्ति एवं सरकार राजा-प्रजा सबके लिए निर्धारित न्यूनतम दान=आय का 10% (दसांश), अधिकतम दान की सीमा नहीं | अधिकतम सर्वस्व दान | कुपात्र को कुछ दान देना वर्जित |
14. दान-संपत्ति = विशिष्ट भावना से संकल्पित दान की संपत्ति का उपयोग उसी विशिष्ट कार्य-संपादन हेतु करना विहित है | अन्य प्रयोग वर्जित |
15. दक्षिणा = सुपात्र ब्राह्मण देवता गुरु पुरोहित शिक्षक चिकित्सक विधि-सलाहकार को सादर देय सेवा-शुल्क; सेवा-शुल्क=निजी आय-संपत्ति |
16. मंदिर = आगम शास्त्र की विधि-विधान द्वारा निर्मित विशिष्ट देवी-देवता की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा से युक्त विशिष्ट धर्मस्थल = विस्तृत सभागार की सुविधा-युक्त शिक्षा रक्षा सेवा व्यवसाय व्यापार विवाहोत्सव एवं सामाजिक-उत्सव का केंद्रीकृत गढ़ (Fortress of Social Function)|
17. ब्राह्मण = वंशपरम्परा एवं गुरु परम्परा से दीक्षित ब्रह्मज्ञानी दुर्गुणमुक्त सद्गुण-संस्कार धारक सदाचारी कल्याणकारी गुरु पुरोहित शिक्षक चिकित्सक वैज्ञानिक कवि लेखक विधि-सलाहकार वक्ता अधिवक्ता न्यायाधीश कवि लेखक गायक वादक शिल्पी वास्तुशास्त्री ज्योतिषी |
18. धर्मनिष्ठ ब्रह्मज्ञानी संस्कारी ब्राह्मण हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय:- गुरु पुरोहित, शिक्षक, चिकित्सक, वैज्ञानिक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, नीतिशास्त्री, वास्तुशास्त्री, ज्योतिषी, गणितज्ञ, प्राध्यापक, विभागाध्यक्ष, प्राचार्य, कुलपति, वक्ता, अधिवक्ता, न्यायाधीश, विधि सलाहकार, सैन्य सलाहकार, सुरक्षा सलाहकार, प्रशासक, सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, कवि, लेखक, गायक, वादक, पुजारी, शिल्पी |
19. धर्मध्वजरक्षक योद्धा धर्मनिष्ठ संस्कारी क्षत्रिय राजपुत्र राजपूत हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय:- राजा, महाराजा, सम्राट, चक्रवर्ती सम्राट, सामंत, दरबारी, क्षेत्र-रक्षक, ग्रामरक्षक, नगररक्षक, समाजरक्षक, राष्ट्ररक्षक, सेनानायक, सेनापति, रथी, अतिरथी, महारथी, शासक, जमींदार आदि |
20. धर्मनिष्ठ संस्कारी व्यवसायी वैश्य हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय = कृषक (किसान), पशुपालक, गौपालक, उद्योगपति, व्यापारी, दुकानदार, स्वर्णकार (सोनार), कुम्भकार (कुम्हार), चर्मकार (चमार), लोहार, बढ़ई, वस्त्र निर्माता, तेली, बनिया, वणिक, धुनिया, धोबी, नाई, मूर्तिकार, बुनकर, जुलाहा, वस्त्र निर्माता दर्जी आदि विभिन्न प्रकार के लाभकारी व्यवसाय में संलग्न व्यवसायकर्मी |
21. धर्मनिष्ठ संस्कारी व्यवसाय-सहायक शूद्र हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय = गृह-कार्य सहायक, कार्यालय सहायक, कृषि-सहायक, उद्योग-सहायक, वाणिज्य-व्यापार सहायक, निजी-कार्य सहायक, सफाईकर्मी, सुरक्षाकर्मी, सैनिक, पदचर, आदेशपाल, गृह सेवक, सेवाकर्मी |
22. धर्मभ्रष्ट बुद्धिभ्रष्ट दुर्गुणयुक्त संस्कारहीन व्यक्ति एवं ढकलेल बकलोल हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय = दैनिक मजदूर, भारवाहक, कुली, खलासी, पदचर, पदाति सैनिक, ठेला चालक, रिक्शा चालक, दैनिक वेतनभोगी, दास, दासी, दाई नौकर | सबको जीविका का अधिकार |
23. नित्य त्याज्य दुर्गुण:- (1) ईर्ष्या (2) द्वेष (3) क्रोध (4) लोभ (5) पूर्वाग्रह (6) पक्षपात (7) घृणा (8) मोह (9) भय (10) अहंकार | मानसिक मल रुपी दुर्गुण मनुष्य को धर्मभ्रष्ट बुद्धिभ्रष्ट बनाकर उचित-अनुचित का निर्णय करने की क्षमता समाप्त कर देते हैं, वात-पित्त-कफ का संतुलन बिगाड़कर विभिन्न प्रकार के शारीरिक मानसिक बीमारी को जन्म देते हैं | जब आदमी के दिमाग में मानसिक मल (दिमागी लैट्रीन) जमा हो जाता है तो उसके मुँह से सुन्दर वाणी के स्थान पर विचित्र-विचित्र दुर्गंधित आवाज (अपशब्द) निकलता है, जो सामाजिक वातावरण को प्रदूषित करता है तथा तनाव टकराव का माहौल बनता है | हत्या बलात्कार व्यभिचार भ्रष्टाचार लूटमार आतंकवाद का यही मूल कारण है|
24. नित्य धारणीय 12 सद्गुण:- (1) धैर्य = धीरज (2) धृति = दृढ निश्चय, पक्का इरादा, फौलादी इच्छाशक्ति (3) दम = स्व-अनुशासन, आत्म नियंत्रण (4) दया (5) क्षमा (6) प्रेम (7) परोपकार (8) विनम्रता (9) निर्भीकता (10) साहस (11) अध्यवसाय (12)विश्वबंधुत्व |
25. संस्कार:- श्रेष्ठ संतान उत्पन्न करने तथा सबके स्वस्थ सफल सुखमय जीवन हेतु 16 संस्कार का विधान है – (1) गर्भाधान (2) पुंसवन (3)सीमन्तोन्नयन (4) जातकर्म (5) नामकरण (6) निष्क्रमण (7) अन्नप्राशन (8) चुड़ाकर्म (9) कर्णवेध (10) उपनयन (11) वेदारम्भ (12)समावर्तन (13) विवाह – गृहस्थ आश्रम प्रवेश (14) वानप्रस्थ (15) संन्यास (16) अंत्येष्टि | विवाह संस्कार तेरहवां संस्कार है |
26. सनातन गुरुकुल = व्यावहारिक वैज्ञानिक सुव्यस्थित सम्पूर्ण सार्थक गुरुकुल शिक्षा पद्धति द्वारा मनुष्य के प्रकृति प्रदत्त मूल स्वभाव एवं गुण के अनुरूप बालपन से विशिष्ट व्यावसायिक शिक्षा-प्रशिक्षण के साथ उपयोगी विषयों की सामान्य शिक्षा |
27. सनातन गुरुकुल पाठ्यक्रम (Syllabus)= (1) वेदविज्ञान = Science of Veda (2) आयुर्विज्ञान = Health Science and Medical Science (3)योगविज्ञान = Science of Yoga (4) धर्मविज्ञान = Science of Dharma (5) अर्थविज्ञान = Science of Economics (6)न्यायविधिविज्ञान = Science of Law and Justice (7) व्यवहारविज्ञान = Behavior Science (8) सैन्यविज्ञान = Military Science (9)भाषाविज्ञान = Linguistics (10) प्रकृतिविज्ञान = Natural Science, Physics, Chemistry, Biology, Zoology, Botany (11)समाजविज्ञान (12) गणनाविज्ञान = Mathematics, Arithmetic, Algebra, Trigonometry, Calculus (13) व्यवसायविज्ञान = Professional Education and Training (14) जीवनकला = Art of Living |
28. वर्ण-व्यवस्था= प्रकृति प्रदत्त मनुष्य के मूल स्वभाव एवं गुण के अनुरूप कर्म-व्यवसाय धारण व्यवस्था; श्रेष्ठ वर के साथ कन्या का विवाह |
29. जाति-प्रथा = विशिष्ट व्यवसाय के व्यावसायिक संस्कार तथा व्यावसायिक ज्ञान विज्ञान तकनीक के उत्तरोत्तर विकास हेतु सभी समुदाय के सभी व्यक्ति द्वारा अपने पारिवारिक व्यवसाय धारण की स्वैच्छिक परम्परा तथा व्यावसायिक कार्यों में स्त्री-पुरुष के परस्पर सहयोग हेतु सभी व्यावसायिक समुदाय में अपने समान जाति-व्यवसाय के स्त्री-पुरुष के बीच वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने की स्वैच्छिक सामाजिक परम्परा|
वह बड़ा हतभागा वह व्यक्ति है जो धर्मनिष्ठ संस्कारी कुल-वंश में श्रेष्ठ माता-पिता की संतान होकरभी धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन होकर कष्टमय जीवन जीता है| पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर | जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर |- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (रश्मिरथी)
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