आज का अर्जुन
द्वापर में बहु छल किए थे कौरव ,मिटाने पर तुले थे कुल का गौरव ,
अब सब समझ चुका है ये अर्जुन ,
आज अर्जुन नहीं दूर जानेवाला ।
समझ चुका तेरा कल बल छल ,
दुर्जन कलंकित अब तेरा है दल ,
झाॅंसे से निकल चुका है अर्जुन ,
बनाएगा तुझे अब निज निवाला।।
चक्रव्यूह का तूने षड्यंत्र रचा था ,
चक्रव्यूह भेदन अभिमन्यु फॅंसा था ,
अब आ गई है जयद्रथ की बारी ,
अब पड़ा है तेरा अर्जुन से पाला ।
दस योद्धा मिल बच्चे को मारा ,
कौरव प्रथमतः वहीं तो था हारा,
फिर कौरव लिया जीत का माला।
अभिमन्यु पर था कुल का नाज ,
जिसपर टूटे थे कौरव बन बाज ,
आज न उठेगा बालक पे उंगली ,
अर्जुन के गले है जीत का माला ।
बहुत खड़े दुर्योधन दुशासन बचे ,
सामने खड़े हैं कृष्ण उनके चचे ,
कौरव दल में अब लगेगा ताला ,
आज का अर्जुन नहीं जानेवाला ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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