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श्री स्वरूप

श्री स्वरूप

धन की देवी अर्थात माता लक्ष्मी जिन्हे तीन देवियों में स्थान दिया गया है। माता पार्वती यानी शक्ति की देवी, माता सरस्वती मतलब विद्या की देवी और मां लक्ष्मी धन की। विद्या, शक्ति और धन तीनों की आवश्यकता हर व्यक्ति को हैं। ज्ञान से बल का प्रयोग और धन का उपयोग समझ में आता है। अगर इन तीनों में समन्वय नहीं बैठा तो पतन निश्चित है।माता लक्ष्मी की सवारी उल्लू हैं जो इस बात को सूचित करता है की अहंकारी और मूर्ख के पास नहीं रहती है मां की कृपा। विष्णुप्रियां जिनका निवास स्थान बैकुंठ और जिनका अस्त्र कमल, चक्र, शंख अक्षयपात्र, वरमुद्रा,अभयमुद्रा, और धनुष - बाण है। इनका प्रतीक चिन्ह श्री यंत्र हैं।अब इनके स्वरूप की बात करे इसका बहुत ही सुंदर वर्णन पुस्तक महालक्ष्मी के आत्मकथन से लिया गया है।


मां का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है।कमल कोमलता का प्रतीक है। माता का एक मुख और चार हाथ है। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृत्यो को दर्शाते है(दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प,श्रमशीलता एवम व्यस्था शक्ति) का प्रतीक है। दोनो हाथो में कमल सौंदर्य और प्रमाणिकता का प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। वाहन उल्लुक निर्भीकता एवम रात्रि में अंधेरे में देखने की क्षमता हैं। वस्तुओ को , संपदाओं को सुनियोजित रीती सदृष्य के लिए सदुपयोग करना उसे परिश्रम एवम मनोयोग के साथ नीति और न्याय के मर्यादा में रहकर उपार्जित करना भी अर्थकला के अंतर्गत आता हैं। उपार्जन अभिवर्धन में कुशल होना श्री तत्व के अनुग्रह का पूर्वार्द्ध है। उत्तरार्ध वह है जिसमें एक पाई का भी अपवव्य नहीं किया जाता। एक एक पैसे को सुद्दैश्य के लिए खर्च किया जाता है। लक्ष्मी मां का जल अभिषेक करने वाले दो गजराजों को परिश्रम और मनोयोग कहते हैं। उनका लक्ष्मी के साथ अविच्छिन्न संबंध है। यह युग्म जहा भी रहेगा वहा वैभव,श्रेय सहयोग की कमी नहीं रहेगी। प्रतिभा के धनी पर संपन्नता और सफलता की वर्षा होती है और उन्हें उत्कर्ष के अवसर पग पग पर उपलब्ध होते हैं। 
ऋचा श्रावणी
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