फिलिस्तीन इजरायल संघर्ष -मनोज मिश्र
आजकल इजरायल और हमास के बीच युद्ध की खबरें जोरों पर हैं। इस युद्ध को २० दिन बीत गए हैं और गाजा पट्टी की आबादी अब आसमान के साथ जमीन से भी बरसने वाले इस कहर को झेल रहे हैं। पूरी दुनिया में फिलिस्तीनी नागरिकों के लिए सहानुभूति इकट्ठा करने की मुहिम चल रही है पर इजरायल इस बार पहले से ज्यादा चौकन्ना है। उसके सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर भी दिन रात इन झूठ फरेबों का पर्दाफाश करने में जुटे हैं। लड़ाई की शुरुआत यूं तो अभी ७ अक्टूबर के हमले से हुई है जिसमें करीब १४०० इसराइली नागरिकों की जान चली गई और करें २५० बच्चे, बूढ़े, स्त्रियां, पुरुष बंधक बना कर हमास ने अपने कब्जे में ले लिए। पर इसराइली फिलिस्तीनी संघर्ष बहुत पुराना है। मजे की बात यह है कि कुरान इसराइली धर्मग्रंथों की कॉपी पेस्ट किताब ही है यहां तक कि लिंग का खतना भी यहूदियों की तरह ही होता है। सारा झगड़ा इस बात का है कि जहां इजरायल बसा है वह जमीन फिलिस्तीनियों की है। अगर हम इतिहास में जाकर देखें तो यह ठीक इसके उलट है। उस जमीन पर पहले यहूदी ही रहते थे। बाद में आने वाली सभ्यताओं ने यहूदियों को अपना गुलान बनाकर उस जमीन पर कब्जा कर लिया। चाहे बेबीलोन की सभ्यता हो या मिस्र की चाहे क्रिश्चियन सभ्यता हो या अरब की सभी ने यहूदियों को अपना गुलाम बनाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाध्य ब्रिटेन आर्थिक तौर पर कमजोर हो गया तब उसने उस अरब भूखंड से हटना चाहा जहां आज फिलिस्तीन और इजरायल हैं। चूंकि दूसरे विश्वयुद्ध में पहले हिटलर ने यहूदियों पर बहुत अत्याचार किया था अतः उन्होंने जमीन के एक ऐसे बंजर टुकड़े को यहूदियों को सौंप दिया जो पूरा रेतीला था और जहां कुछ नहीं उगता था। यहूदियों ने इस टुकड़े का नाम इजरायल रखा। हालांकि इसका पुराना नाम नेक्सटर इजरायल था। वहीं फिलिस्तीनी आबादी के लिए भी बाकी भूमि छोड़ी गई। १९४८ में हुए इस विभाजन ने पूरे अरब देशों का ध्यान खींचा और उन्हे लगा कि यहूदियों जड़ से समाप्त कर मुस्लिम प्रभुता का वो डंका बजा सकते हैं। १९६७ में मिस्र सीरिया और जॉर्डन जैसे अरब देशों ने मिलकर इजरायल पर आक्रमण कर दिया। पर सिर्फ छह दिन चले इस युद्ध में अरब देशों को करारी हार मिली और इजरायल ने गोलन हाइट और गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर भी कब्जा करके अपनी बस्तियां बसा दीं। मुस्लिम देश चाह कर भी कुछ न कर सके। १९८८ में फिलिस्तीन का एक राष्ट्र के रूप में आविर्भाव हुआ। १९४८ में इजरायल के गठन और उसको मान्यता मिलने के उपरांत भी फिलिस्तीन नाम का कोई राष्ट्र न था। जो जमीन संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को दी थी उससे बची हुई जमीन पर मिस्त्र और जॉर्डन का शासन था।अमेरिका शुरू से आज तक इजरायल के साथ खड़ा है। विश्व के बदलते राजनीतिक्रम में सन १९७४ में इजरायल ने गोलन हाइट और गाजा से अपना कब्जा सीरिया से हुए समझौते के बाद स्वेच्छा से हटा लिया। १९८२ के बाद इजरायल ने सिनाई क्षेत्र से भी अपना कब्जा हटा लिया। उसने अपनी बसाई हुई ९००० बस्तियां भी हटा लीं। इजरायल के हटते ही इस खाली किए गए क्षेत्र को फिलिस्तीन ने अपने कब्जे में ले लिया। कालांतर में २००५ में इजरायल ने गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक से भी अपना कब्जा हटा लिया। इतना कुछ होने के बाद भी इस्लामी लड़ाके इजरायल को नेस्तनाबूद करने की धुन में इजरायल पर आक्रमण करते रहे हैं। १९६७ के उपरांत हालांकि जमीनी झड़पें चलती रहीं पर शनैः शनैः इजरायल के नागरिक भी अपनी ही सरकार के निर्णयों के खिलाफ होने लगे। भारत की तरह सेक्युलरिज्म वहां भी हावी होने लगी। २००५ के बाद फिलिस्तीनियों को अपने देश से दस गुना ज्यादा वेतन पर इजरायल के गाजा पट्टी से सटे क्षेत्रों में काम मिलने लगा। लोग भी निश्चिंत थे तभी ७ अक्टूबर घटित हुआ और हमास की बर्बरता ने इजरायल की जड़ें हिला दिन। इजरायल ने युद्ध का ऐलान कर दिया। तब से २० दिन बीत चुके हैं युद्ध की विभीषिका में ७००० से ज्यादा फिलिस्तीनी जिसमें नागरिक और हमास के लडाके शामिल हैं, मारे गए हैं। आलीशान और गगनचुंबी इमारतें ध्वस्त हैं। तकनीकी कार्यक्षेत्र में फिलिस्तीन काफी अच्छा कर रहा था पर हमास के एक गलत निर्णय ने सब चौपट कर दिया। बहुत से लोग कहेंगे की इजरायल ने फिलिस्तीनी इलाकों पर जबरन कब्जा कर रखा है जो सच भी है पर ये लड़ाई फिलिस्तीन राष्ट्र नहीं लड़ रहा है बल्कि उसका एक आतंकवादी धड़ा हमास लड़ रहा है।
अब प्रश्न यह भी है कि हमें किसका साथ देना चाहिए। हमास ने अपनी क्रूरता और बर्बरता में ISIS को भी पीछे छोड़ दिया है। अतः एक सभी समाज के तौर पर हम उसका समर्थन नहीं कर सकते और यही हमारी सरकार ने किया है।- मनोज कुमार मिश्र
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