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ब्राह्मण भोज

ब्राह्मण भोज

ब्राह्मण होते हमारे पुरोहित ,
यजमानों के होते सच्चे मीत ।
यजमानों के होते शुभचिंतक ,
सबके करनेवाले होते हैं हित ।।
ब्राह्मण को हैं ब्रह्म सम मानते ,
ब्राह्मण ये होते हैं हमारे पूज्य ।
ब्राह्मण ही हममें आस्था जगाते ,
ब्राह्मण सम कहाॅं कोई दूज्य ।।
ब्राह्मण को सादर घर बुलाना ,
आदरपूर्वक बैठाकर खिलाना ।
दान दक्षिणा उन्हें सादर देकर ,
सादर उन्हें घर तक पहुॅंचाना ।।
ब्राह्मण तृप्त हो आशीष देते ,
हमारा भी होता तब कल्याण ।
ब्राह्मण कृपा पूर्वज तृप्त होते ,
ब्राह्मण सेवा ही होता है दान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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