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"अनकही बात ..... आस्था वही"

"अनकही बात ..... आस्था वही"

जीर्ण मंदिर की वीरान जमीं,
आज भी है आस्था का केन्द्र।
जहाँ आते हैं लोग दूर - दूर से,
अपनी वो अभिलाषाएं लेकर।

एक बात कहूं अनकही सी,
आस्था आज भी वही सी ।
जीर्ण मंदिर की सुनो सिसकी,
वीरान जमीं बनी है जिसकी।

धूप से पिघले हुए हैं शिखर,
खंडित हुए हैं देवता।
परन्तु दिल में है अभी भी,
उसका विश्वास अपरिवर्तित।

आस्था का दीपक आज भी,
जल रहा है उसी अंधेरे में।
भक्तों की आँखों में,
आशा की चमक है अभी भी।

आज भी जीर्ण मंदिर में आते हैं,
भक्त अपने मन की मन्नत लेकर।
वो सिसकते हुए इस मंदिर से भी ,
अनमोल आशीर्वाद - कृपा पाते हैं।

जीर्ण मंदिर की यह दीवारें,
कहानी कहती हैं ये पुरानी।
भक्तों की आस्था,
उन्हें आज भी रखती सजीव।

वीरान जमीं पर,
देखो फूल खिले हैं आज भी।
भक्तों की श्रद्धा,
उन्हें है जीवन देती अभी भी।

धूल से भरा है मंदिर का दरवाजा,
परंतु आस्था का दीप जला है।
मंदिर की दीवारों पर लिखे हैं श्लोक,
आस्था के प्रति प्रेम जगा रहे हैं।

वीरान जमीं पर मंदिर खड़ा है,
आस्था की मिसाल है।
आस्था का दीपक बुझ नहीं सकता,
यह तो सच्चाई है।

स्वरचित एवं मौलिक पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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