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राष्ट्र से बेवफाई

राष्ट्र से बेवफाई

क्यूॅं करते हो तुम देश से गद्दारी ,
क्यूॅं करते तुम राष्ट्र से बेवफाई ।
मात पिता का जो हो न सका ,
क्या तुम्हारा हो सकता है भाई ।।
किसी का हो न सका अपराधी ,
तेरा क्या वह कुछ हो सकता है ?
घर की थाल जो रखा न सुरक्षित ,
क्या राष्ट्र को नहीं खो सकता है ?
आतंक नक्सल माओ व हमास ,
अंतर्राष्ट्रीय होते ये अपराधी हैं ।
गुप्त रूप में होते हैं पालने वाले ,
जो बड़े बड़े लिए हुए उपाधि हैं ।।
बख्शते नहीं किसी को विषधर ,
विषधर को खूब दूध पिलाने से ।
पचा सकते कभी नहीं हैं कुत्ते ,
कुत्ते को सुगंधित घी पिलाने से ।।
बख्श सकते तुम्हें नहीं आतंकी ,
चाहे जो करो आर्थिक सहयोग ।
यकीन नहीं तो छोड़कर देख लो ,
मृत्यु का करोगे शीघ्र उपभोग ।।
जिस थाली में तुम खाना खाए ,
उसी में कर रहे तुम भी हो छेद ।
अपने ही राष्ट्र का बनकर भेदिया ,
दूसरे को दे रहे अपना तुम भेद ।।
तुम से बेहतर तो कुत्ता है होता ,
मालिक संग करता न बेवफाई ।
तुम तो हुए कुत्ते से भी बद्तर ,
रास नहीं आता तुम्हें तेरा भाई ।।
मिथ्या देते राष्ट्रभक्ति का व्यौरा ,
मिथ्या करते जनता का पुकार ।
अब नहीं तेरा दाल गलने वाला ,
छुपा बैठे हो चाकू ले पैनी धार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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