माता कालरात्रि
जय जय माता कालरात्रि ,जय जय माता तू काली ।
भक्तों हेतु तू अमृतप्याला ,
दुष्टों हेतु विष की प्याली ।।
तू ही कहलाती है चामुंडा ,
तू ही है दानव विनाशक ।
भक्तों हेतु तुम वरदायिनी ,
उपासना करते उपासक ।।
गर्दभवाहिनी बिखरे बाल ।
दया करो जय माता देवी ,
पूजन करते तेरे ये लाल ।।
बाएं कर ले अस्त्र व शस्त्र ,
आतताइयाॅं करें सर्वनाश ।
दाएं भुजा आशीष हैं देतीं ,
पूरण करें भक्तों की आस ।।
तन में माॅं बाघंबरी पहने ,
रूप लिए बहुत विकराल ।
दुष्टों की माॅं लहू ही पीती ,
गले पहनतीं माॅं मुंडमाल ।।
जय जय माता कालरात्रि ,
जय जय दुष्टों हेतु काल ।
अहंकार सबसे तू छिनकर ,
भक्तों का माॅं कर प्रतिपाल ।।
तूझे सदा नमन है माता ,
मेरी भक्ति ये करो स्वीकार ।
क्षमा करो बेटे की नादानी ,
हमें भी माॅं करो अंगीकार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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