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भरत मिलाप

भरत मिलाप

राम रावण का था भीषण युद्ध ,
राम‌ से रावण भी कम नहीं था ।
राम करते थे जब तीरों का वार ,
रावण भी राम से नम नहीं था ।।
दशहरा हुआ दशानन का अंत ,
विभीषण को राज भार मिला ।
लंका पाया एक धार्मिक राजा ,
लंका को नया ये संसार मिला ।।
राम को भरत ने वचन दिया था ,
समय पूरे होते शीघ्र आना होगा ।
नहीं आए जो समय से आप तो ,
हमें प्राण त्याग दिखाना होगा ।।
भगवान राम को भय यही था ,
शीघ्रता करता भी मजबूरी था ।
भाई भरत को भी था बचाना ,
शीघ्र वहां पहुंचना जरूरी था ।।
आया था शीघ्र पुष्पक विमान ,
राम सीता संग सब हुए सवार ।
अगले ही दिन नंदी ग्राम पहुॅंचे ,
जहाॅं था अनुज भरत से प्यार ।।
चारो भाई मिल हुए विह्वल ,
नंदीग्राम भरत मिलाप हुआ ।
पहले चली अश्रुओं की धारा ,
फिर आपस में प्रलाप हुआ ।।
तब से ही हो रहे हैं रामलीला ,
तब से चल रहे भरत मिलाप ।
हृदय हुए थे सबके ही हर्षित ,
मिटे सबके हृदय का संताप ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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