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गलतियाँ कसूर विना

गलतियाँ कसूर विना

डॉ रामकृष्ण मिश्र
पंजीकृत हो गयीं।
अभिलाषाएँ सारी
विन खाये सो गयीं।।


बेकसूर चिन्तन के पाँव
बँधी बेड़िया ।
नारों में ं भटक गयी
‌ छूटी अठखेलियाँ।।
तारांकित प्रार्थना
विवादों में खो गयी।।


आश्वासन का प्रवाह
मन्द-मन्द लगता है।
दस्तूरी का मौसम
ऐसे क्या चलता है।।
छ:पाँच की गुडिया
घृणा - बीज बो गयी।।


त्यैरियाँ चढा़ने का
समय बहुत तंग है।
रक्त- रक्त खेलना
उपद्रव का अंग हं।।
नाश की विभीषिका
ईर्ष्या पिरो गमी।। *"****"""""""""***13रामकृष्ण
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