श्री स्कंदमाता की जय
जय माॅं दुर्गे आदिशक्ति भवानी ,आज पंचम् स्वरूप तुम्हारी है ।
स्कंद नाम कार्तिकेय की जननी ,
स्कंदमाता नाम बहुत न्यारी है ।।
नवरात्रि का आज पंचम् दिवस ,
भक्त भक्तिन तेरी पुकार करे ।
तेरी कृपा से सब कर रहे भक्ति ,
माॅं तू भक्तों को बहुत प्यार करे ।।
सिंहवाहिनी पद्मासनी तू माता ,
चत्वारीभुजी माॅं तू कहलाती है ।
तृतीय हस्त तू स्कंद गोद लिए ,
चतुर्थ हस्त से वर दे नहलाती है ।।
माॅं नाम स्वरूप से तुम हो अनेक ,
किंतु सच्चे रूप में तुम एक हो ।
तुम्हीं हो आदिशक्ति दुर्गा भवानी ,
भक्तों हेतु माॅं तुम बहुत नेक हो ।।
बेटे बेटी तो ये सारे ही हैं तेरे ,
किंतु कुछ ही रम पाते भक्ति में ।
होता है विश्वास अदम्य तुम पर ,
सारी शक्ति निहित तेरी शक्ति में।।
मुझ पर भी कृपा कर दो माता ,
मैं भी सुंदर सा तेरा माॅं प्यार बनूॅं ।
स्वस्थ नीरोग पावन हो ये जीवन ,
तेरी कृपा का मैं पालनहार बनूॅं ।।
तुम्हें सहृदय सादर नमन है माते ,
मेरी सादर भक्ति स्वीकार करो ।
जैसा भी हूॅं मैं हूॅं माता तेरा बेटा ,
क्षमा कर माॅं मुझे अंगीकार करो।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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