माता की ममता
माता बना रहीं खेल खिलौने ,कपड़ों पर कुछ उकेड़ रही हैं ।
पीछे से लटकी छोटी लाड़ली ,
गले से लटक कर छेड़ रही है ।।
माॅं अपनाई जीविका साधन ,
नन्हीं बेटी बाधा डाल रही है ।
खिलौने का रोजगार अपनाकर ,
आजीविका बेटी पाल रही है ।।
उधर अपना रोजगार देखना ,
इधर नन्हीं सी लाड़ली बेटी है ।
दोनों माया माता को दबोचे ,
माता होती ममता की पेटी है ।।
एक तो आजीविका पालना ,
दूसरी पालना अपनी बेटी है
दोनों को है माता को बचाना ,
भले ही बेटी पीठ पर लेटी है ।।
माॅं का आंचल माॅं की ममता ,
होती बहुत जग में ये न्यारी है ।
औलाद हेतु माॅं प्राण भी देती ,
औलाद हेतु भी माॅं प्यारी है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com