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माता की ममता

माता की ममता

माता बना रहीं खेल खिलौने ,
कपड़ों पर कुछ उकेड़ रही हैं ।
पीछे से लटकी छोटी लाड़ली ,
गले से लटक कर छेड़ रही है ।।
माॅं अपनाई जीविका साधन ,
नन्हीं बेटी बाधा डाल रही है ।
खिलौने का रोजगार अपनाकर ,
आजीविका बेटी पाल रही है ।।
उधर अपना रोजगार देखना ,
इधर नन्हीं सी लाड़ली बेटी है ।
दोनों माया माता को दबोचे ,
माता होती ममता की पेटी है ।।
एक तो आजीविका पालना ,
दूसरी पालना अपनी बेटी है
दोनों को है माता को बचाना ,
भले ही बेटी पीठ पर लेटी है ।।
माॅं का आंचल माॅं की ममता ,
होती बहुत जग में ये न्यारी है ।
औलाद हेतु माॅं प्राण भी देती ,
औलाद हेतु भी माॅं प्यारी है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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