हमारे त्यौहार
मानव करता रात दिन है श्रम ,घर परिवार हेतु ही आहार को ।
महंगाई जीवन को करे बाधित ,
औ छिने पारिवारिक प्यार को ।।
विद्वजनों ने एक मार्ग दिखाया ,
संग सरकार बढ़ाई निज हाथ ।
जन जन हेतु अवकाश घोषित ,
हर कोई बैठे परिवार के साथ ।।
अवकाश हेतु ये आधार बनाया ,
सुंदर सुशील सबका व्यवहार ।
सब कोई मिल खुशियाॅं मनाएं ,
इस हेतु शुभ ये बनाया त्यौहार ।।
पर्व त्यौहार में होता है अन्तर ,
पर्व साधना आराधना उपासना ।
त्यौहार में हम खूब खाते पीते ,
पकवान मिठाई करते सामना ।।
पर्व होता है हमारी यह आस्था ,
स्व ईष्ट आराध्य की करते पूजा ।
तन मन हमारा ये पावन होता ,
अंतर्मन न कुछ हो पाता दूजा ।।
खूब हॅंसते खेलते कूदते बच्चे ,
नव वस्त्र पहन खूब उछलते हैं ।
खूब खाते हैं पकवान मिठाई ,
मित्रों संग खुशी में वे मचलते हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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