एक मदारी बीच शहर में बंदर नचा रहा था ।
बंदर बंदरी की बातें खुब मन को भा रहा था ।।
कहा मदारी ने दोनों से , आपस में तुम बात करो ।
साथ अगर रहना चाहो तो , एक दूजे को ब्याह करो ।।
बंदरी ने पूछा बंदर से, ब्याह क्या हमसे करना है ?
बंदर बोला तुम्हें ब्याह कर हमको बेमौत न मरना है ।।
हम ठहरे गरीब का बेटा , तुम अमीर की बेटी हो ।
सारे सुख तेरी झोली में , घर की बहुत चहेती हो ।।
तेरी ख्वाहिश बड़ी बड़ी है , पूरी कर नहीं पाएंगे।
कर न सके ख्वाहिश पूरी तो, मुफ्त में मारे जाएंगे ।।
तुम ठहरी अमीर की बेटी, हम कंगले दिवाले हैं ।
बदन तुम्हारा गोरा गोरा , हम तो काले काले हैं ।।
जिंस पैंट में सजी हुई हो , आंखों पर चश्मा काला है ।
बैग हाथ में लटक रहा है , चाल तेरा मतवाला है ।।
तुम क्या जानो चौका चुल्हा , रेस्टोरेंट में खाना है ।
क्या है गरीबी तुम नहीं जानो ,तुम्हे अमीरी दिखाना है ।।
ब्याह किया तो मेरे गरीबी का मजाक सदा उड़ाओगी ।
कलह अशांति रोज खड़ा कर , हमको खुब तड़पाओगी ।।
मजे शादी के उड़ जायेंगे , तलाक की नौवत आयेगी ।
सुखी ब्याह की सारी कल्पना ,धरी की धरी रह जाएगी ।।
डमरू बजा कर मदारी बोला , अच्छे भले कुंआरे हो तुम ।
प्रेम नहीं है तुम दोनों में , गरीबी अमीरी के मारे हो तुम ।।
अभी ही इतना लड़ते दोनों , शादी करके और लड़ोगे ।
अपनी गृहस्थी के झगड़े में , मेरा भी धंधा बंद करोगे ।। जय प्रकाश कुंअर
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हम ठहरे गरीब का बेटा , तुम अमीर की बेटी हो ।
सारे सुख तेरी झोली में , घर की बहुत चहेती हो ।।
तेरी ख्वाहिश बड़ी बड़ी है , पूरी कर नहीं पाएंगे।
कर न सके ख्वाहिश पूरी तो, मुफ्त में मारे जाएंगे ।।
तुम ठहरी अमीर की बेटी, हम कंगले दिवाले हैं ।
बदन तुम्हारा गोरा गोरा , हम तो काले काले हैं ।।
जिंस पैंट में सजी हुई हो , आंखों पर चश्मा काला है ।
बैग हाथ में लटक रहा है , चाल तेरा मतवाला है ।।
तुम क्या जानो चौका चुल्हा , रेस्टोरेंट में खाना है ।
क्या है गरीबी तुम नहीं जानो ,तुम्हे अमीरी दिखाना है ।।
ब्याह किया तो मेरे गरीबी का मजाक सदा उड़ाओगी ।
कलह अशांति रोज खड़ा कर , हमको खुब तड़पाओगी ।।
मजे शादी के उड़ जायेंगे , तलाक की नौवत आयेगी ।
सुखी ब्याह की सारी कल्पना ,धरी की धरी रह जाएगी ।।
डमरू बजा कर मदारी बोला , अच्छे भले कुंआरे हो तुम ।
प्रेम नहीं है तुम दोनों में , गरीबी अमीरी के मारे हो तुम ।।
अभी ही इतना लड़ते दोनों , शादी करके और लड़ोगे ।
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