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हिन्दी' के लिए नेहरू से लड़ पड़े सेठ गोविन्द दास, मुख्यमंत्री पद की दे दी बलि:-डा अनिल सुलभ

हिन्दी' के लिए नेहरू से लड़ पड़े सेठ गोविन्द दास, मुख्यमंत्री पद की दे दी बलि:-डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन ने दी काव्यांजलि, जयंती पर बाबू शिवनन्दन सहाय का भी किया स्मरण।

पटना, १६ अक्टूबर। महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत के जिन महान त्यागियों ने अपना ऐश्वर्यपूर्ण सुखमय जीवन का त्याग कर दिया और देश-सेवा के लिए समर्पित हो गए, उनमे सेठ गोविन्द दास का नाम परम श्रद्धेय है। स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान और उसके बाद राष्ट्रभाषा हिन्दी और हिन्दी साहित्य के आंदोलन को सेठ गोविंद दास का बहुत बड़ा संबल प्राप्त हुआ। 'हिन्दी' के प्रश्न पर वे तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू से भी लड़ पड़े, जिसके कारण, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का सुनिश्चित पद उनके हाथ से निकल गया।
यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि तबके राजनेता अपने सिद्धान्त के लिए मुख्यमंत्री पद का मोह त्याग देते थे, जैसा कि हिन्दी के लिए सेठजी ने किया और आज मुख्यमंत्री बनने के लिए कोई नेता कुछ भी करने पर आमादा रहता है। एक वह भी समय था जब बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू श्रीकृष्ण सिंह विना पूर्व सूचना के साहित्य सम्मेलन आ जाते थे और सम्मेलन का सुख-दुःख पूछ जाते थे। पुस्तकालय में समय दिया करते थे और आज के मुख्यमंत्री को, सम्मेलन के लिए, १५ वर्षों में भी एक घंटा का अवकाश नहीं मिलता है।
डा सुलभ ने कहा कि सेठ जी की साहित्यिक प्रतिभा भी उच्च कोटि की थी। वे एक सफल नाटककार और उपन्यासकार थे। उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। भारत में हुए, प्रथम चुनाव से लेकर १९७४ तक, जबतक जीवित रहे, सेठ जी जबलपुर से भारत के संसद-सदस्य रहे। साहित्य और शिक्षा में उनके अवदान को देखते हुए उन्हें पद्मभूषण के अलंकरण से भी विभूषित किया गया।
जयंती पर सम्मेलन के पूर्व सभापति शिवनन्दन सहाय को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि खड़ी बोली की प्रथम पीढ़ी के साहित्यकारों में उनका बड़ा ही श्रद्धेय नाम था। वे १९२१ में संपन्न हुए, सम्मेलन के तीसरे अधिवेशन के सभापति थे। उन्हें हिन्दी का प्रथम जीवनीकार भी माना जाता है। उन्होंने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, गोस्वामी तुलसी दास, चैतन्य महाप्रभु, रूपकला जी, सिख-संत बाबा सुमेर सिंह की अत्यंत जीवंत जीवनी लिखी।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, मशहूर शायरा तलत परवीन, डा पंकज वासिनी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, ई अशोक कुमार, शंकर शरण मधुकर, कवयित्री सरिता सिन्हा, अर्जुन प्रसाद सिंह, बाँके बिहारी साव, अर्जुन सिंह बैरागी, अरुण कुमार श्रीवास्तव आदि कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो सुशील कुमार झा ने किया।प्रो राम ईश्वर सिंह, विनय चंद्र, नारायण कुमार, अमन वर्मा, सुरेंद्र साह, नन्दन कुमार मीत, दिगम्बर जायसवाल, डौली कुमारी, रवींद्र कुमार सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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