कुछ दोष अपना भी है, सरकारों को दोष न दो,
वोट दिया अपराधी को, नेता को तुम दोष न दो।जो बोया वही उगेगा, बबूल वृक्ष पर आम न होगा,
केवल मीठे आमों खातिर, बबूल को भी दोष न दो।
क्यों सोते हैं भूखे बच्चे, फटेहाल फुटपाथों पर,
प्रश्न खडा सबके सम्मुख, बस सत्ता को दोष न दो।
कुछ लोगों ने घर को बाँटा, माँ बाप को बाँट दिया,
बच्चों को भी बाँट रहे हैं, राम कृष्ण को दोष न दो।
माना घोर अधर्म हो रहा, व्यभिचार भी बढता जाता,
अर्थ प्रधान जगत में भैया, सब पुरूषों को दोष न दो।
राम राज की बात करें जो, खुद रावण बनकर घूम रहे,
सीता हरण था मर्यादाओं का, लक्ष्मन को दोष न दो।
मुफ्त में सब पाने की चाह, आमद दोगुनी काम जरा सा,
पहले खुद के भीतर झाँको, मँहगाई को दोष न दो।
भ्रष्ट आचरण, रिश्वतखोरी, बेईमानी के जो पोषक,
शिक्षा, स्वास्थय व्यापार बना, मानवता को दोष न दो।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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