शुभ नवरात्रि का द्वितीय दिवस ,
माॅं आदिशक्ति के द्वितीय स्वरूप ।द्विभुजी श्वेत वस्त्रधारिणी माता ,
अनंत शक्तिधारिणी निर्मल रूप ।।
द्वितीय रूप में आईं आज माते ,
कर्म धर्म लिए माता ब्रह्मचारिणी ।
सदा शुभ फल माता हैं देनेवाली ,
तपस्या में रत माता तपश्चारिणी ।।
ब्रह्म का आचरण करनेवाली माॅं ,
तप में रहनेवाली सदा माॅं लीन ।
मातकृपा जिस भक्त पे है होती ,
भक्त भी होते तब सदा भयहीन ।।
विश्व पर कृपा तुम बरसाओ माॅं ,
युद्ध पे लगाओ शीघ्र ही विराम ।
विश्व में तुम सुख शांति ये दे दो ,
सब पे कृपा बरसाओ अविराम ।।
जय जय जय माता ब्रह्मचारिणी ,
मम नमन करो माॅं तुम स्वीकार ।
मन मस्तिष्क मेरा पावन कर दो ,
जन जन से हमें मिलता रहे प्यार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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