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पान सुपारी और सरौता, बीते दौर की बातें हैं,

पान सुपारी और सरौता, बीते दौर की बातें हैं,

गले अँगोछा सिर पर टोपी, बीते दौर की बातें हैं।
कहाँ बचे हैं चूल्हे चौके, कहाँ बचा है अब आँगन,
हींग बघार, हाथ की रोटी, बीते दौर की बातें हैं।
माँ का आँचल बात पुरानी, जिसमें जाकर छिपते थे,
आँचल का परचम लहराना, बीते दौर की बातें हैं।
मिल बाँट कर खाना खाना, झूठा लड़ना और मनाना,
रेत घरौंदे ख़्वाब सजाना, सब बीते दौर की बातें हैं।
नहीं बचा बचपन गाँव में, शहरों की क्या बात करें,
कभी गाँव था अपना घर सारा, बीते दौर की बातें हैं।

अ कीर्ति वर्द्धन
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