आओ फिर एक बार धरती पर कालिके।।
डॉ रामकृष्ण मिश्रसंवेगों में सीमित भाव हैं हमारे।।
अनाचार ,हत्याएँ व्यभिचारी चिनतन।
बढ़ता आतंक दंश दानव -सा कुंभन।
हारे निर्दोष कहो किसको पुकारे।।
धूम राशि घेर रही सारा आकाश।
बढ़ती जा रही तीव्र शोणित की प्यास।।
जिए आम आदमी किसके सहारे।।
कटुता का साथी दुर्दान्त स्वार्थ अपना
ऐसेे में शान्ति कहाँ सारा सुख सपना।।
जाने किस क्षण मृत्यु द्वार पर पधारे।।
डॉ रामकृष्ण
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बढ़ता आतंक दंश दानव -सा कुंभन।
हारे निर्दोष कहो किसको पुकारे।।
धूम राशि घेर रही सारा आकाश।
बढ़ती जा रही तीव्र शोणित की प्यास।।
जिए आम आदमी किसके सहारे।।
कटुता का साथी दुर्दान्त स्वार्थ अपना
ऐसेे में शान्ति कहाँ सारा सुख सपना।।
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