हम तो हैं बस मेहमान यहां,
अपना तुम कहते रहते हो ।मेरे कारण कितने सारे ,
दुख दर्द मुसीबत सहते हो ।।
घर मेरा तो है और कहीं ,
यहां कुछ दिन का ही ठिकाना है।
निबटाने दो सब कामों को ,
जल्दी ही वापस जाना है ।।
जोड़ो ना ज्यादा नेह जाल ,
वह बहुत तुम्हें भरमाएगा ।
हाथों से हाथ फिसलते ही ,
गम बहुत तुम्हें तड़पाएगा ।।
इस रंग मंच पर हम सारे ,
बस अपना रोल निभाते हैं ।
जैसे ही पर्दा गिरता है ,
वापस अपने घर जाते हैं ।। जय प्रकाश कुंअर
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