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माता कुष्मांडा की जय

माता कुष्मांडा की जय

माता आदिशक्ति दुर्गा भवानी का
आज चतुर्थ दिवस का ये स्वरूप ।
सुविख्यात जगत में माॅं कुष्मांडा ,
भक्तों हेतु धूप तो दुष्टों हेतु कूप ।।
वनराजवाहिनी माता हैं कुष्मांडा ,
अष्टभुजी माता सुंदर तनधारिणी ।
माता बहनें करें पूजा आराधना ,
बनकर माता तेरी ही पूजारिणी ।।
प्रथम हस्त में माॅं लिए कमंडल ,
द्वितीय नागास्त्र करि नाशनहारी ।
तृतीय हस्त वाण धनुष ये शोभे ,
भक्तों हेतु सुंदर यह सुरक्षाधारी ।।
चतुर्थ सलिल पंचम चक्र सुदर्शन ,
षष्ठम् हस्त माता विराजत गदा ।
जब जब भी पैदा हुए हैं ये अरि ,
तब तब मृत्यु गोद सुलाईं सदा ।।
सप्तम् कर शुभ जपमाल विराजे ,
कलश पियुष विराजे अष्टम् हस्त ।
गले सुन्दर सा मुक्ताहार विराजे ,
दुराचारियों का करें बेड़ा अस्त ।।
आदिशक्ति का माॅं रूप तुम्हीं हो ,
माॅं भवानी माॅं दुर्गा रूप तुम्हीं हो ।
भक्तों हेतु माता तुम्हीं हो छाया ,
अधमों हेतु कड़ी धूप तुम्हीं हो ।।
तुम्हें सदा हमारा है नमन माता ,
दूर करो सदा मेरा क्लेश व द्वेष ।
कृपा रहे हम पे माॅं सदा तुम्हारी ,
तन मन में भरे न कभी अवशेष ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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