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"ख्वाहिशों के शहर में"

"ख्वाहिशों के शहर में"

कितने मशरूफ रहते हैं लोग यहां,
समझते नहीं हैं दिल की बेचैनियां।
हर कोई खोया अपने ख्यालों में,
खोजता है खुशियों की झलकियां।

सच्चे प्यार की तलाश में,
लोग भटकते रहते हैं यूंही।
प्यार मिलता नहीं है यहां,
बस मिलती हैं तनहाइयां।

इस ख्वाहिशों के शहर में,
चारों तरफ़ हैं तनहाइयां।
भटकता है हर शख्स यहां,
तलाशता है नज़दीकियां।

खुद को खोजते हैं लोग यहां,
अपने अस्तित्व की तलाश में।
पर खुद को 'कमल' नहीं पाते,
बस मिल जाती हैं तो बेचैनियां।

स्वरचित एवं मौलिक 
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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