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किसने कहा कि बेटियाँ मरती हैं कोख में,

किसने कहा कि बेटियाँ मरती हैं कोख में,

पलते हुये देखा है, माँ बाप के आगोश में।
नही चाहिये बच्चे, एक से ज्यादा किसी को,
करा देते गर्भपात, कुछ पढे लिखे जोश में।


चल रहा है फैशन देश में, बेटी बचाने का,
दुनिया की निगाह, मुल्क नीचा दिखाने का।
लगता सारी बेटियाँ, भारत की मर रही,
पैसा कमा रहे कुछ, यह सब जताने का।


देता हूँ चुनौती अब, जाओ करो कुछ काम,
अपनी ही बस्ती के, ढूँढ कर लाओ परिणाम।
कितने हैं घरों में बेटे, और कितनी हैं बेटियाँ,
तब तक लेखनी को, दो थोडा सा विश्राम।


खुद से भी कभी पूछना, सवाल अजीब सा,
कराया था गर्भपात कभी, कन्या भ्रूण का?
क्या लिया कभी, अजन्मी बेटी से इन्तकाम,
पछतावा हुआ था तुम्हें, उस गलत जूनून का?


पीडा है हमको बहुत, हम पढ लिख गये,
संस्कारों से अपने, बहुत दूर खिसक गये।
कहते हो विकास की दौड में, आगे बढ रहे,
विदेशी प्रचार का तुम, बस हिस्सा बन गये।


चाहते हो सच में तुम यदि बेटी को बचाना,
संस्कार भी देना उसे और बेटी को पढाना।
कोशिश करो घर में रहें, दो से तीन बच्चे,
संयुक्त परिवार का स्नेह उसको सिखाना।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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