माॅं कात्यायनी
नमन नमन माॅं कात्यायनी ,नमन तुम्हें सदा हस्तजोड़ ।
कृपा मुझ पर माॅं बरसाओ ,
हृदय जुड़ावहु मातु मोर ।।
महर्षि कात्यायन की सुता ,
वरदान स्वरूप तुम आई हो ।
वर्षों तप किए कात्यायन ,
कात्यायन सुता कहलाई हो ।।
तू माते कहलाती दयामयी ,
मेरा भी माते बेड़ा पार करो ।
मैं भी सबसे हिलमिल जाऊॅं ,
मन मेरा मिलनसार करो ।।
तू कहलाती है सिंहवाहिनी ,
तुम विराजीं भुजा चत्वारी ।
प्रथम हस्त से अभय प्रदान ,
द्वितीय हस्त आशीष भारी ।।
तृतीय हस्त सुमन विराजे ,
चतुर्थ हस्त में खड्गधारी ।
संशय संकट दूर करें माते ,
चाहे संकट ये जितना भारी ।।
रोग क्लेश द्वेष दुःख दरिद्रता ,
दूर कर करो अभय प्रदान ।
धन धान्य भी परिपूर्ण करो ,
अज्ञानता मिटा भरो माॅं ज्ञान ।।
लोभ क्रोध ईर्ष्या ये दूर करो ,
बना दे जन जन को दयावान ।
कोई किसी को कभी न सतावे ,
विश्व बना दे ऐसा आलीशान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com