Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

एक पुजारी का जीवन और पंडित का भाग्य??

एक पुजारी का जीवन और पंडित का भाग्य??

अरुण कुमार
दुर्गापूजा समाप्त हुई , पुजारी अपने थके हुए शरीर के साथ दुर्गा पूजा करके घर लौटे। सभी लोगों का एक ही बात पूजा में पुजारी जी की अच्छी खासी आमदनी हुई है। फ्रूट स्वीट साड़ी बहुत कुछ मिला होगा।
लेकिन उनको कौन समझाये 20 लाख रुपये के बजट वाले पूजा में केवल 4 लाल झालर वाली सफेद साड़ी मिला वह भी एकदम जाल की तरह हैं। गमछा मिला जिसका आकार देखकर रूमाल भी शर्मा जाये।
सभी समितियों में एक या दो ऐसे व्यक्ति होते है जो पुजारी जी की गलती को पकड़ने के लिए बैठे रहते है। वह समय-समय पर ज्ञान देते रहते हैं कि वह पुरी के पुजारी दक्षिणेश्वर के पुजारी से बहस कर चुके है और उनका स्थिती खराब कर दिये थे। अब आईये दक्षिणा की ओर दशवें दिन समिति द्वारा पुजारी जी को दक्षिणा दिया जाता है वो भी कमिटी जो देता है पुजारी जी खुशी-खुशी रख लेते हैं।
पुजा कराते,कराते पुजारी जी का गला भी बैठ चुका था। जहां हर कोई अपने पत्नी बच्चों एवम् परिवार के साथ पूजा में खुशी मना रहा है परिवार के साथ घुम रहें है वहीं पुजारी जी खाली पेट जोर-जोर से मंदिर में मंत्रोच्चारण कर रहे हैं। मैं उन लोगों को कहना चाहता हूं जो सोचते हैं कि एक पुजारी बिना परिश्रम के ही कमाई करते हैं, तो उनमें से कोई भी एक व्यक्ति 10 दिन बिना खाये-पिये खाली पेट एक मंडप से दूसरा मंडप दौड़िये और लगातार 2 घंटा उच्चस्वर में दुर्गासप्तशती का पाठ किजीये फिर सच्चाई पूरी तरह समझ में आ जायेगी एक पुजारी कितना परिश्रम करतें हैं।
पुरोहित की पत्नी बच्चें एवम् उनके बुढ़े माता-पिता भी उस दशमी का इंतजार करते हैं उस दक्षिणा के पैसे से पुजारी जी के बच्चों के लिए पुस्तक, कपड़े माता-पिता के लिए दवा खरीदना होता है पूजा के बाद सभी परिवार के सदस्य उनके घर लौटने का बेसब्री से इंतजार करते है. वापस लौटते समय रास्ते में कोई कहेगा आज तो बहुत कमाई हुई हैं पंडित जी पुरा बैग भरा हुआ हैं। इसी में से कुछ हमें भी दे दो ऐसे बोलकर पुजारी जी का उपहास उरायेगा।फिर भी पुजारी जी उसको अनसुना करके आगे निकल जातें है।
वे लोग पुजारी जी के जीवन की शारीरिक और मानसिक पीड़ा को नोटिस नहीं करते हैं। "जब किसी को रेलवे में भारी बोनस मिलता है या अन्य व्यवसायों में बहुत पैसा कमाता है, तो उनको कोई यह कहने नही जाता है कि इस बार तो काफी बोनस मिला है कुछ मुझे भी दे दो ।
फिर एक कर्मकांडी ब्राह्मण को ही क्यो कोई कहता हैं ?
कभी कोई ये नही कहता कि पन्डित जी पुजा आ गया हैं बच्चों के कपड़े खरीदने के लिए आप ये कुछ पैसे रख लो वैसे भी पुजा में काफी खर्च होता हैं।
वे हमेशा बड़े मंदिर,तिरुपति या जगन्नाथ मंदिरों के पुजारियों की आय की तुलना एक साधारण पुजारी से करते हुए उदाहरण देतें हैं। लेकिन अधिकांश पुजारी जानतें हैं कि जीवन कितना कठिन है। पुजारी सभी का भला चाहता है, उपवास करके जोर जोर से मंत्रोच्चारण करते हैं और अपने लीवर एवम् हार्ट का समय से पहले 12 बजा देते हैं । मैंने यह भी देखा है कि घर पर मासिक आय डेढ़ लाख से अधिक है। लेकिन सत्यनारायण पूजा की दक्षिणा इक्यावन रुपये है। इसे बढ़ाने के लिए यदि पुजारी बोल दे ।तो ,लोग एक परिचित शब्द का उपयोग करते है कि "पुजारी लालची" है। पुजारी को एक पैसे से भी संतुष्ट होना चाहिए।
हाँ, पुरोहित का तो ना पेट है, न पीठ, न रोग, न वस्त्र और जो खरीदने जायेगे वो भी फ्री में मिल जायेगा। जब कोई नर्सिंग होम अतिरिक्त पैसे लेता है तो ये लोग कुछ नहीं कहते। यदि स्कूल चंदा के नाम पर अधिक पैसे लेते हैं, तो भी आप चुप हैं। वे लालची नहीं हैं ?हाँ, यह समाज है। और यही न्याय है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ