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कुछ देर ठहर जाओ

कुछ देर ठहर जाओ

छः माह पर आई हो माते ,
दिल मेरे ये नहीं हैं अघाते ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
चल रही हैं विपरीत हवाएं ,
धरा पे छाईं बहुत विपदाएं ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
इजरायल हमास हैं उलझे ,
रूस यूक्रेन भी नहीं सुलझे ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
युद्ध का निकाल दे तू हल ,
विश्व को बना दे तू निश्छल ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
युद्ध को तुम अब दो विराम ,
विश्व को दे दो शांति विश्राम ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
धरा पर माता तुम ध्यान दो ,
सबको एक सूत्र में बाॅंध दो ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
धरा सुंदरतम तुम सॅंवार दो ,
आतताइयों को भी संहार दो ,
माता कुछ देर ठहर जाओ ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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