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बली प्रथा और दूर्गा

बली प्रथा और दूर्गा

नवरात्रि आनेवाली है। घर घर में, चौक चौराहों पर बने पंडालों में कलश स्थापना होगा। चौक चौराहों पर बने पंडालों में सप्तमी को मां की मूर्ति स्थापित होगी। प्रति दिन देवी मंत्र का गायन होगा। नवमी के दिन बली की प्रक्रिया होगी। क्योंकि मान्यता है कि बली से देवी प्रश्न होती है।
बली क्या है?बली देना कहां तक सही है। इस पर विचार करने के पहले देवी के नौ रूपों को पहले ध्यान में लाएं।
देवी का प्रथम स्वरूप है शैलपुत्री अर्थात पार्वती का। दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी अर्थात सरस्वती का। जिनकी उपासना प्रति दिन घर घर में होती है।
क्या दोनों स्वरूप की उपासना में लहसुन,प्याज का भोग लगाते हैं। कदापि नहीं।
नवरात्रि में नवमी के दिन नौ देवी के रूप में आप कन्या पूजन करते हैं। पूजन पश्चात कन्या को आप भोजन कराते हैं। नवरात्रि व्रत करने वाले नौ दिन तक नमक भी नहीं खाते।खाते भी हैं तो सेंधा नमक‌‌। कन्या को कई जगह लोग बिना नमक का या सेंधा नमक में ही भूना चना देते हैं। जब लहसुन,प्याज का बना सामग्री कन्या को भोग नहीं लगाते।
बली का तात्पर्य हत्या नहीं भोजन होता है। सामान्य भाषा में इस तरह समझे कि किसी की मृत्यु उपरांत अग्नि संस्कार करने वाले भोजन करने के पहले कागबलि (पितर के लिए भोजन) निकालते हैं ‌। कागबलि का अर्थ काग की बली नहीं अपितु काग के लिए भोजन होता है क्योंकि पितर काग के रूप में धरा पर आते हैं।
देवी को अहंकार, क्रोध, लोभ अर्थात अपने अवगुणों का बली देंना चाहिए। देवी जीव हत्या से नहीं बल्कि अपने अंदर व्याप्त अवगुणों को त्याग करने से प्रश्न होगी। प्रतिक स्वरुप नारियल,भतुआ इत्यादि का बली देना भी शास्त्र सम्मत नहीं है । इसका सबसे सुंदर उदाहरण वैष्णव माता का मंदिर है। जहां आप नारियल लेकर जाते हैं । लौटते समय वही नारियल बिना फोड़े (साबुत ) प्रसाद स्वरूप वापस मिल जाता है।
आज देखने में यह भी आ रहा है कि चाहे किसी देवी/देवता का मंदिर है वहां लोग नारियल लेकर जाते हैं,नारियल फोड़कर अपने आपको धन्य समझते हैं धर्माचारों को विचार करते हुए ऐसी कुप्रथा पर रोक लगानी चाहिए।
कहां भी गया है अहिंसा परमो धर्म:
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