आँगन चाहे छोटा ही हो
डॉ रामकृष्ण मिश्रदिल को बड़ा बनाएँ।।
दिल से ही हरियाली जगती
पात - पात पर मोती।
कोई हँसता है जी भर कर
कहीं रात भी रोती।।
ईर्ष्या के उलझे जो धागे
पहले ही सुलझाएँ।।
जिस मिट्टी के लिए आँख की
लाली तनी हुई है।
अपने शोणित की धारा में
ही कुछ ठनी हुई है।।
उस नृशंस आतुर बहसी को
स्नेह- सुधा बरसाएँ।।
गारे- ईंटों के विशाल तरुओं मे
कहाँ मनुज है।
अंधी राहों पर चलने वाला ही
बड़ा दनुज है।
अगर हो सके किसी तरह
मन को ही स्वस्थ बनाएँ।।डॉ रामकृष्ण
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पात - पात पर मोती।
कोई हँसता है जी भर कर
कहीं रात भी रोती।।
ईर्ष्या के उलझे जो धागे
पहले ही सुलझाएँ।।
जिस मिट्टी के लिए आँख की
लाली तनी हुई है।
अपने शोणित की धारा में
ही कुछ ठनी हुई है।।
उस नृशंस आतुर बहसी को
स्नेह- सुधा बरसाएँ।।
गारे- ईंटों के विशाल तरुओं मे
कहाँ मनुज है।
अंधी राहों पर चलने वाला ही
बड़ा दनुज है।
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