Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

चित्रानुसार

चित्रानुसार

आज चल रहे यत्र तत्र विद्यालय ,
आज से पहले चलते थे गुरुकुल ।
आज दी जाती विद्यालयी शिक्षा ,
पहले था सभ्यता संस्कृति मूल ।।
आज चलते शिक्षक छात्र रिश्ते ,
पहले था गुरु शिष्य यह प्रधान ।
गुरु होते थे स्वयं बहुत ही पावन ,
पावन दीक्षा ही करते थे प्रदान ।।
गुरुकुल से भी पहले थे आश्रम ,
तब गुरु होते भगवत के समान ।
माता पिता सम स्नेह थे बरसाते ,
शिष्यों के वे पूर्ण करते अरमान ।।
आश्रम के तब कठिन थे नियम ,
मातापिता करते थे पूर्ण विश्वास ।
बचपन में ही बच्चों को थे सौंपते ,
लेकर गुरु से वे पूरी पूरी आस ।।
गुरु भी सहर्ष शिष्य स्वीकारते ,
माता पिता भेजते कर आश्वस्त ।
मातापिता को था पूर्ण भरोसा ,
वापस लौटते थे होकर विश्वस्त ।।
भिक्षाटन कर भोजन था होता ,
गुरु आदेश होता तब शिरोधार्य ।
गुरु दीक्षा तनमन से पूरी करते ,
फिर लगते अपने अपने कार्य ।।
आश्रम में संग सब दीक्षा लेते ,
भोजन करते मिल संग में साथ ।
हर कार्यों में सब सहयोगी होते ,
हर कार्य समाप्त थे हाथों हाथ ।।
जो शिष्य जब भी युवा थे होते ,
घर पहुॅंचाते गुरु उसे लेकर संग ।
घर पर सबके थे परिचय कराते ,
और समझाते तुम इनके अंग ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ