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न कोई समझ सकता है

न कोई समझ सकता है

डा• मेधाव्रत शर्मा, डी.लिट.
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
न कोई समझा सकता है
कोई शिक्षक
काल से बड़ा नहीं
जो दोनो को मूर्ख साबित कर देता है
मोह-मूर्च्छा को चूर कर
अपनी जोरदार चोट से
एकबारगी होश में ले आता है
जब समझानेवाले पर वही विषय
हो पड़ता है घटित
तो अट्टहास करती है विडम्बना
समझने के लिए जानेवाला ही
समझाने लगता है समझदार को
इसी सत्य को गुनते हुए शायद
अनुनादित हो उठी है
स्मृतिकार की वाणी---
"नापृष्टः कस्यचिद् ब्रूयात्
न चान्यायेन पृच्छतः
जानन्नपि हि मेधावी मूढवल्लोक आचरेत् "
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