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बहस चल रही लेकिन

बहस चल रही लेकिन

असली मुद्दा खिसक गया।।


ऊँची- ऊँची बातों के
लरछे ,ऊलझे--उलझे
जिनको सुलझाना था
वे सब पेंच कहाँ सुलझे।।
हंसते खिलते प्रश्नों का
ताना ही विदक गया।।


जाना तो था नदी घाट
सागर की बात उठाई
विला वजह हाथा -पाई में ं
अपनी साख गँवाई।।
समय जरा संकोची था
पहले ही ठिठक गया।।


ताक लगाये बडे कैमरे
चुप-चुप झाँक रहे।
मंडल के रंगों में जन मन
नीयत आँक रहे।
खेल सियासी सच्चा -झूठा
खुद ही बहक गया।। ***********11
रामकृष्ण
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