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अकेला चला मैं

अकेला चला मैं

जिंदगी के सफर में,
अनुभवों को साथ ले चला
मुस्कुरा लेता था कभी कभी
दिल के जख्मों को भरने के लिए,
कलम को ढाल बना मैं
जीने लगा नई जिंदगी
अनुभव जो दिल की गहराइयों में
दबे-दबे दर्द दे रहे थे
पन्नों पर उतरने लगे अनवरत
अब मैं अकेला नहीं
कलम रुपी प्रेमिका विचरती है हर पल
मेरे अख्स के साथ.-
सविता शुक्ला
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