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आप कहां हैं, और करना क्या हो ❓

आप कहां हैं, और करना क्या हो ❓

~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
हमारा हक किसने मारा ? जिम्मेवार कौन?
जब वर्तमान समय में जातीय गोलबंदी का दौर चल रहा है, उच्च व तकनीकी शिक्षा का दौर चल रहा है, जहां - छोटी-छोटी जातियां अपनी एकता का प्रदर्शन कर रही है, छोटी-छोटी जातियों के बच्चे उच्च व तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और वहीं आप पारंपरिक ब्राह्मण वृति करने के लिए अपने बच्चों को वाध्य कर रहे हैं। फिर इतने मात्र से खुश हो रहे हैं कि दाल रोटी तो चल रहा है ना। जबकि, हकीकत को भी आप समझते हैं कि अब अन्य किसी भी जाति में ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा नहीं रहा।
कहां गया फसल उपजने पर मिलने वाला एक-एक बोरा कुड़ी और सीधा?
कहां गया हर त्योहार पर मिलने वाला ब्रह्मआहार का कच्चा अन्न जो कम से कम 15 से 20 किलो प्रति यजमान मिला करता था ?
ब्राह्मणों को सुखा अन्न - चावल, दाल, हल्दी, मिर्च, मसाला, तेल/ घी के अलावा हरी सब्जियां कभी खरीदना नहीं पड़ता था ।
ब्राह्मण कभी भी हल- बैल नहीं रखते थे फिर भी यजमान अपना खेती का काम छोड़कर पहले पुरोहित जी का खेत जुताई, रोपाई और वोआई करा देता था वह भी मुफ्त ।
पर आज परिवेश पूर्ण रूप से बदल गया है । ब्राह्मणों के प्रति सम्मान नाम का कोई भी चीज नहीं रहा । ब्राह्मणों को अब जागना होगा अपनी तंद्रा से । अब ईमानदारी से आप दूसरी जाति के लोगों की तारीफ करना और सलाह लेना छोड़ दें । आपसी रंजिश को छोड़ कर एक नेतृत्व स्वीकार करें! आप अगर एसा करते हैं तो मैं दावे के साथ करता हूं कि मेरा प्रयास और आपका सार्थक सहयोग - 5 वर्ष के अंदर संपूर्ण परिवर्तन का गवाह बनेगा।
हमसब को मिलकर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक क्रांति लाना है - रिजल्ट 5 वर्ष के अंदर अवश्य दिखेगा।
इन क्षेत्रों में अन्य जातियां आज अगर हमसे आगे है तो उसकी सोच का परिणाम है कि वो हमसे आगे हो गए हैं हम लोग भगवान भरोसे बैठे हैं । भगवान हमारे भरोसे कभी बैठे भी रहते हैं क्या?
आज दशरथ मांझी एक इतिहास पुरुष बन गया तो अपने कर्म से बना । जब वह पहाड़ तोड़कर रास्ते बनाने का काम करता था तो लोग उसकी हंसी उड़ाया करते थे किंतु वह जरा भी विचलित नहीं हुआ निरंतर अपने कर्म में लग रहा , परिणाम सबके सामने आया। हमें भी वैसे ही लोगों से सीख लेने की आवश्यकता है।
हमारा लक्ष्य है आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने का। जिससे स्वतः ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बदल जाएगा ।
आर्थिक उन्नयन के लिए हमें रोजगार का सृजन करना है।
शैक्षिक उन्नयन के लिए हमें फ्री में कोचिंग की व्यवस्था करनी है।
राजनीतिक उन्नयन के लिए हमें संगठनात्मक प्रदर्शन करना है।
सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी शक्ति का एहसास कराना है ।
इन सभी बदलाव हमारे ग्रामीण क्षेत्र से आरंभ होगा तभी राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रभाव पड़ेगा ।
हमें अर्जुन जैसा बनना पड़ेगा जिसे एकमात्र चिड़ियां की आंख नजर आ रही थी उसी प्रकार हमें अपना लक्ष्य पर नजर रखना है ।
आज समाज आपसी रंजिश की अग्नि में जल रहा है । हालांकि, समाज को इस हाल में लाने का श्रेय हमारे तथाकथित विद्वान और धनवान लोगों का कुछ अधिक ही रहा है क्योंकि जब वे आपका कल्याण करेंगे तो उनका कल्याण कौन करेगा ?
अच्छे कर्मकांडी कभी नहीं चाहते कि आप या आपका बच्चा अच्छा कर्मकांडी बने ! कारण कि उनकी दुकान बंद हो जाएगी ।
कोई अच्छा चिकित्सक नहीं चाहता कि हमारा या अपने समाज का कोई व्यक्ति अच्छा चिकित्सक बने! कारण कि उनकी दुकान बंद हो जाएगी ।
समाज का कोई वकील आपको सही सलाह नहीं देगा ! कारण कि उनकी दुकान बंद हो जाएगी ।
अपने समाज में, बड़े-बड़े स्कूल कॉलेज चलने वाले धन कुबेरों की भी कमी नहीं है किन्तु वे अन्य जातियों के गरीब बच्चों को अपने विद्यालय में फ्री में पढ़ाएंगे किंतु अपने समाज के गरीब बच्चों को नहीं। कारण कि उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी ।
अब हम नेताजी का समर्पण और त्याग की बात कर ले--
नेता चाहे आपके समाज के हो या दूसरे समाज के , ऐसे तो अपने समाज में नेता ना के बराबर है फिर भी जो है वो हमारे समाज का शोभा बढ़ा रहे हैं वे सिर्फ समाज के लिए खाना पूर्ति करते हैं । कारण वे अपनी पार्टी की सिद्धांत पर चलेंगे उनकी मजबूरी है ।
दूसरी जाति के नेताओं को सिर्फ आपके वोट से मतलब है आपका कल्याण से नहीं।
सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना हो तो सर्वप्रथम उस जाति को पहुंचाएंगे जो संगठित है । भले ही उसकी जनसंख्या एक या आधे परसेंट है । आप तीन से चार प्रतिशत जनसंख्या सत्यनारायण भगवान का प्रसाद है।
इसलिए शिक्षा, चिकित्सा, आवास आदि आरक्षण जैसी सुविधाओं से वंचित है । शिक्षण संस्थानों में क्या आपका कोटा है ? नहीं ।
हेल्थ कार्ड कितने लोगों के पास है ?
राशन कार्ड ,लाल कार्ड कितने लोगों के पास है ?
अन्य सरकारी योजनाओं में आपके लाभार्थी कितने हैं ?
क्या इन समस्याओं का समाधान किसी नेता ने निकालने का प्रयास किया ? क्या वर्षों से शाकद्वीपीय समाज के पुरोधा बने स्वनाम धन्य मूर्धन्य लोगों ने कभी प्रयास किया ?
जबाब होगा नहीं । आखिर कौन पूछता है गरीबों और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों को जिसमें एकता नाम का कोई उदहारण नहीं ।
अपने समाज में एक गंभीर बीमारी है टांग खींचने का । मैं कहता हूं की आप टांग नहीं उंगली पकड़ना सिखो ! आज मैं आपके बीच आपकी समस्याओं का समाधान ढूंढने निकला हूँ । तो अपने ही लोग हमें ढूंढ रहे हैं - टांग खींचने के लिए ! अरे भैया, आप भी आगे बढ़ो ना मैं आपकी उंगली पकड़ने के लिए तैयार हूं । आप मेरा टांग पकड़ रहे हो ? मैं कोई महान या बड़ा व्यक्ति तो हुँ नहीं! बंधुओं क्या ऐसा होना चाहिए ?
विचार करना होगा ।
मैं संगठन संचालन के लिए 4 स समय, साहस ,संकल्प और समर्पण की चर्चा हमेशा करता हूं इसी का नतीजा है कि मैं अपने विरोधियों से डटकर मुकाबला करता हूं और मुंहतोड़ जवाब देता हूं।
अगर वैचारिक क्रांति लाना है तो बिल्कुल हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा।
अपने समाज में कोई एक गाड़ी खरीदना है तो आप दो गाड़ी खरीद कर दिखा दे उसे । किंतु , नकारात्मक विचारों साए लबरेज हो कर गाड़ी के टायर को पंचर मत करो । पंचर करना तो आसान है यहाँ तो टायर खोलकर ही ले भागने मे लगे रहते है ।
हम सब को ऐसे लोगों को मुख्य धारा में लाना ही उद्देश्य होना चाहिए।
मैं स्पष्ट बोलने का आदी हूँ,मेरे पोस्ट से किसी को कुछ तकलीफ भी होती है तो क्षमा चाहता हूं ।
सच्चाई और अच्छाई अगर खुद के अंदर नहीं है तो पूरी दुनिया में ढूंढ लेना कभी कोई सच्चा और अच्छा व्यक्ति नहीं मिलेगा और खुद के अंदर सच्चाई और अच्छाई अगर है तो दूसरा भी आदमी सच्चा और अच्छा दिखेगा l
जो लोग दूसरों को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं, संकट की स्थिति में सहयोग करते हैं उन्हें खुद भगवान उठाते हैं और जो दूसरों का टांग खींचकर नीचे गिरने का प्रयास करता है उसे भगवान खींचकर नीचे गिरा देते हैं।
ऐसे तो समय समाज में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसमें कमियां नहीं हैं अगर आपके अंदर की सभी कमियां दूर हो जाए तो आप भगवान हो जाएंगे! किंतु ऐसा नहीं होता ।
मैं तो दावे के साथ कहता हूं कि मुझ में भी कई कमियां है किंतु मैं अपनी कमियों को समझता हूं। मैं भी गुस्सा करता हूं कुछ ऐसी बातें आती है तो गुस्से से लाल भी हो जाता हूं आखिर में भी भगवान नहीं हूँ । मैं भी कभी भावावेश में कुछ शब्दों का सही चयन नहीं करता जिससे कुछ बुद्धिजीवियों को बुरा लग जाता है, मुझे भी झेलना पड़ता है और मैं झेलता भी हूं । फिर भी, अपनी कमियों को कम करने का प्रयास करता हूं । अंततः जो अच्छा काम करता है उसे कुछ अधिक ही विरोध का सामना करना पड़ता है । आप भी अच्छे काम की शुरुआत करें! शकद्वीपीय समाज को आगे बढ़ाने के इस अभियान में सहकर्मी बने ! सहभागी बने !!
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