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बुढ़ापा।

बुढ़ापा।

बुढ़ापा आया और स्वास्थ्य गया ,
अब तो शरीर बस रोग का खजाना है ।
लाख तुम उपाय करो ,
कसरत,परहेज करो ,
पर इससे अब कुछ भी नहीं होना जाना है ।
योग अथवा ध्यान करो ,
स्वास्थ्य नियम का अनुपालन कऱो ,
ये सारी बातें अब मात्र एक बहाना है ।
कफ ,पित्त , वात सब ,
शरीर को घिरते जा रहे हैं।
उदर का विकार रोज ,
नये सिरे से सता रहे हैं ।
कान सुन न पा रहा है ,
दांत गिरता जा रहा है ।
आंखों की रोशनी भी ,
अब धीरे-धीरे जा रही है ।
पैर भी शरीर को अब ढो नहीं पाते हैं ,
कुछ दुर चलकर वे स्वयं थक से जाते हैं ।
डाक्टर इलाज सब मन का दिलासा है ,
ईश्वर का ध्यान ही अब सबसे बड़ी आशा है ।
उनका बनाया यह देह ,
हाड़ मांस का पुतला है ।
वे ही नचा , चला रहे हैं इसे ,
बाकी सब सोच केवल , मनुष्य का ढकोसला है ।
बुलाने को वे हर इशारा दे रहे हैं ,
हम फिर भी नहीं समझ पा रहे हैं ।
हम मूर्ख हैं जो गिरते स्वास्थ्य के नाम पर ,
उनके बुलावे के इशारों को, अनदेखा किये जा रहे हैं ।
जब तक तेरी सांस है ,
जीवन की आश है ।
जाने से पहले तुम खुद को समर्पित करो ,
अपने तन मन को तुम ईश्वर को अर्पित करो ।
शायद, तुम्हारा बुढ़ापा सुकून से कट जाएगा ,
अन्यथा मेरे दोस्त , अब कुछ भी नहीं हो पाएगा । जय प्रकाश कुंअर
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