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बीत गया वह दौर पुराना, घर पर काजल बनता था,

बीत गया वह दौर पुराना, घर पर काजल बनता था,

सरसों तेल में बाती, उसमें बादाम बताशा पड़ता था।
तेल दिये के ऊपर सराही, काजल जिसमें जम जाता,
गाय घी में मिलाकर संरक्षित, वर्ष भर वह चलता था।


नित रात में काजल, आँखों को शीतलता देता,
नारी के सौन्दर्य की चर्चा, काजल उसमें सजता।
तीखे नयन कटारी जैसे, काजल से सज जाते,
झुकी पलक मन आहत तो, काजल बतला देता।


अ कीर्ति वर्द्धन

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